
अगर मिर्च के किसान "अदामा कंपनी के यह 8 बेहद उपयोगी उत्पाद" जानेंगे तो उमदा और भरपूर उपज से तगड़ा मुनाफा कमाएंगे!
Share
मिर्च की डिमांड मजबूत होने के बाबजूद मिर्च के किसान मुनाफा नहीं कमा पाते. इसके कई कारण है जैसे...
रीसेट एग्री के माध्यम से हम ईन सारी समस्याओंके हल पर चर्चा करते है. मिर्च के फसल पर लिखे गए हमारे सारे लेख अवश्य पढे. आज के इस लेख मे चर्चा करेंगे अदामा कंपनी के चुनिंदा उत्पादनों की. इनमे शाखनशी, किटनाशी, फफूंदनाशी और वृद्धिनियंत्रकोंकी बात करेंगे. यह सारे उत्पादन आधुनिक और अच्छे दर्जे के है. इनके इस्तेमाल से किसानों को इनके खर्चे से अनेक गुना फायदा मिलेगा. बाजार मे मिलने वाले नकली, बनावटी और मिलावटी दवाओंके इस्तेमाल से बचने के लिए आप ईन दवाओं को एमजोन से खरीद सकते है. इसी वर्ष सरकारने एमजोन द्वारा बेचे जानेवाले उत्पादनों पर सक्त नियम लागू किए है, जिसके कारण एमजोन पर असली, असरदार और बिना किसी मिलावट के उत्पादन बेचे जा रहे है. एमजोन आपको पक्की रसीद देता है. इसके अलावा कीमत मे भारी छूट भी मिलती है. तो चलिए जान लेते है...
- फसल के खर्चे ज्यादा होना
- व्हायरस, किट, रोग आदि के प्रकोप होना
- ज्यादा उपज होने से मार्केट के रेट कम होना
- बदलते जल-वायु से फसल का नुकसान होना
एजिल: वार्षिक और बारहमासी घास होंगे गायब!
अदामा का एजिल शाखनाशी "प्रोपाक्वीझाफोप १० % इसी" (Propaquizafop 10% EC)से बना है. इसका उपयोग ढेर सारे वार्षिक और बारहमासी घास नियंत्रण के लिए किया जाता है।
चौड़ी पत्ती वाले फसलों में आप इसका उपयोग कर सकते है जिसमे मिर्च के आलावा भिन्डी, बेंगन, आलू, चुकंदर, तिलहन, सोयाबीन, सूरजमुखी, अंगूर, फलों और वानिकी में कर सकते है. यह एक चयनात्मक खरपतवार नियंत्रक है. खरपतवार के 2-4 पत्ती के चरण में छिड़काव करने पर सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त होता है।
एजील एक प्रणालीगत शाकनाशी है, जो पत्तियों द्वारा जल्दी से अवशोषित हो जाता है और पत्ते से पत्तियों के बढ़ते बिंदुओं और छिड़काव वाले खरपतवारों की जड़ों में स्थानांतरित हो जाता है।
आवेदन के 1 घंटे बाद वर्षा हो तो भी यह अपना सम्पूर्ण असर दिखता है.
एजील लाभकारी कीड़ों और स्तनधारियों के लिए सुरक्षित है और पर्यावरण के अनुकूल है।
यह 100ml, 250ml, 500ml और 1ltr के पैक साइज में उपलब्ध है।
--------------------------------------
किटनाशक: चूसक किट, सूँडीया और मकड़ी का करे नियंत्रण
--------------------------------------
बाराज़ाइड - सुंडियो का खात्मा
इसमें दो सक्रिय घटक है. इमामेक्टिन बेंजोएट से सुंडीयोंको लकवा मार देता है.
नोवालुरॉन कायटीन के संश्लेषण को रोकता है। अंडों से निकलने वाले लार्वा की त्वचा कायटीन से बनी होती है। लार्वा का रूपांतर इल्ली मे होने के लिए उसे तीन से चार अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है और हर बार उसे कायटीन की आवश्यकता होती हा। क्योंकी नोवालुरॉन कायटीन के संश्लेषण को रोकता है, लार्वा का रूपांतरण बाधित होता है। यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है, लार्वा से इल्ली बनते समय फसल का सबसे अधिक नुकसान होता है, जो नोवालुरॉन रोखता है।
बाराज़ाइड ढेर सारी सुंडियो के नियंत्रण के लिए एक प्रभावी उपाय है. तुरंत और लम्बे अंतरालतक असर दिखता है . किटनियंत्रण का खर्चा कम करता है.
बाराज़ाइड का छिडकाव चावल, मिर्च, लाल चना और पत्ता गोभी में हीरक पृष्ठ पतंगा (DBM), फल छेदक, फल्ली छेदक, तना छेदक के लक्षण दीखतेही अवश्य करे.
विशेषताएँ:
बाराज़ाइड १०० मिली, २५० मिली, ५०० मिली और १ लिटर पैकिंग में उपलब्ध है.
--------------------------------------
प्लेथोरा-इल्लीयोंका सर्वनाश
यह एक व्यापक किट नाशक है जो फल, फल्ली, तना छेदक, पत्तीया खानेवाली और मोड़ने वाली इलियों नियंत्रण के लिए उपयुक्त है। उड़द, मूँग, अरहर, चना जैसे दलहनी फसले, मूंगफली, सोयाबीन जैसी तिलहनी फसले, टमाटर, मिर्च जैसी फल सब्जियां और धान जैसे अनाज मे इसका उपयोग कीया जाता है।
यह दोहरा असर दिखानेवाला एक अभिनव उत्पाद है। यह सस्पेंशन घोल होने है। जहरीले सॉल्वैंट्ससे मुक्त होने के कारण, यह पर्यावरण के अनुकूल है। इसमें दो सक्रिय तत्व होते हैं जिनकी कार्यशैली भिन्न है।
नोवालुरॉन कायटीन के संश्लेषण को रोकता है। अंडों से निकलने वाले लार्वा की त्वचा कायटीन से बनी होती है। लार्वा का रूपांतर इल्ली मे होने के लिए उसे तीन से चार अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है और हर बार उसे कायटीन की आवश्यकता होती हा। क्योंकी नोवालुरॉन कायटीन के संश्लेषण को रोकता है, लार्वा का रूपांतरण बाधित होता है। यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है, लार्वा से इल्ली बनते समय फसल का सबसे अधिक नुकसान होता है, जो नोवालुरॉन रोखता है।
इंडोक्साकार्ब, जो प्लेथोरा का दूसरा सक्रिय घटक है, इल्ली के तंत्रिका प्रणाली को अवरोधित करता है। परिणामस्वरूप इस चरण की तत्काल आधार पर मृत्यु हो जाती है।
प्लेथोरा 50 मिली, 100 मिली, 350 मिली, 500 मिली और 1 लीटर के पैक साइज में उपलब्ध है।
--------------------------------------
टकाफ - चुसकोंका खात्मा!
कपास और मिर्च जैसे फसलों में रसचूसने वाले कीटक बेतहाशा नुकसान करते है. जब यह फसले तेजी से बढ़ रही होती है, तब इनमे रसोंका प्रवाह बड़े तेजी से होता है. जडो से पानी और उर्वरकों के घटक पत्तियों और टहनियों के और प्रवाहित होते है. सूरज की ऊर्जा को सोककर शर्करा से भरा जो रस तयार होता है वह पत्तियों से टहनियों और जडो के और बहेता है. इस दरम्यान फसल फुल और फलों के बहार के लिए खुदको तैयार करती है. ठीक इसी वक्त माहू (अफिड), फुदके (लीफ हॉपर), तैला (थ्रिप), सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाय) और मकड़ी (माईट) जैसे कीड़े फसल पर पनपना शुरू करते है. वे पत्तियों और टहनियों को काटकर उसमे बने ज्यूस को पीना शुरू करते है. ज्यूस से पानी को स्त्राव के माध्यम से अलग कर पत्तियों पर छोड़ते है. यह स्त्राव चिपचीपे होने से इसपर बेक्टेरिया, फफूंद और चीटिया लग जाती है. जिस तरह मच्छर मलेरिया का प्रसार करते है वैसेही सफेद मक्खी जैसे रस चूसने वाले किट व्हायरस को एक पौधे से दुसरे पौधे तक फैलाते है.
शुरुवात के समय जब इन किटोकी संख्या कम होती है तब फसल साफ़ सुधरी दिखाई देती है. किट आँखोंसे नजर नहीं आती. लेकिन कीटोको उस वक्त ढेर सारा पोषण उपलब्ध होता है तो वह तेजी से प्रजनन शुरू करते है. दिन दुने और रात चौगुने बढने लगते है. इनकी संख्या १०-१२ दिन में हजारों गुना बढती है. इनकी संख्या बढने से, इनके माध्यम से फैलने और पनपने वाले बेक्टेरिया, फफूंद, चीटिया और व्हायरस भी फसल पर हामी होने लगते है. १३ से २५ दिनों में फसल पूरी तरह तहसमह्स हो जाती है. पत्तिया दागदार हो जाती है. टेढ़ीमेढ़ी हो जाती है. पौधा झुलसने लगता है. ऐसे फसल में फुल-फल कम लगते है. उपज कम हो जाती है. वक्त और लागत निष्फल हो जाते है.
इस समस्या को ध्यान में रखकर अदमा आपके फसलके लिए ट्काफ दवा ले आया है. यह दवा एक सस्पेंशन घोल है जो पर्यावरण और उपयोग कर्ता को सोल्वंट से बचाता है. इसमें डायफेनथ्युरोन तथा बायफेनथ्रीन यह दो बेहद असरदा सक्रिय घटक है. पौधे जब तेजी से बढ़ रहे हो तभी टकाफ का १.२५ मिली प्रति लिटर के हिसाब से छिडकाव करे. १५ लिटर के एक पम्प में २० मिली दवा की जरूरत होगी जिसकी लागत ६० रु से कम है.
अगर आप ट्काफ के छिडकाव से चुक जाते है और फसल में संक्रमण फ़ैल जाता है तो आपको इस दवा का छिडकाव १५ दिन के अन्तराल से दुबारा करना होगा. इसके आलावा अब आपको फफूंदी नाशक, बेक्टेरियानाशक भी साथ में मिलाने होगे. अगर फसल बेहद खराब हो चुकी हो तो आपने उर्वरक भी देना चाहिए. इस तरह लागत तिन से चार गुना बढ़ जाती है और उपज भी उतनी अच्छी नही होगी. तो टकाफ का छिडकाव वक्त पर करे...जब फसल शानदार तरीके से बढ़ रही है और फसल पर चुसक कीटों का असर दिखाई ही नही दे रहा है!
इसका मुख्य सक्रिय तत्व, डायफेनथ्युरोन, एक प्रणालीगत तथा स्पर्शीय कीटनाशक है। यह खुद सक्रिय नही होता. आवेदन के बाद, सूरज के रौशनी या जैविक प्रक्रिया से इसका रूपान्तर कार्बोडाइमाइड में होता है. यह कार्बोडाइमाइड सक्रिय होता है जो कीटों में माइटोकॉन्ड्रिया के कामकाज को रोकता है। माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं का पावर हाउस है। माइटोकॉन्ड्रिया आपके मोबाइल के पावर सेल की तरह है। डायफेनथ्युरोन में पक्षियों, स्तनधारियों (इन्सान, बिल्ली, चूहा) और लाभकारी कीड़ों के लिए कम विषाक्त है। यह शिकारी मकड़ी के लिए केवल थोड़ा विषैला होता है। यह मछली के लिए विषैला होता है लेकिन मछली को नुकसान नहीं पहुंचाता क्योंकि पानी में यह तेजी से विघटित होकर बेअसर हो जाता है।
बिफेंथ्रिन एक व्यापक असर दिखानेवाला कीटनाशक है. यह सेवंती के फुले में पाए जाने वाले किटनाशक से सम्बंधित है. बिफेंथ्रिन तंत्रिका कोशिका की सामान्य संकेत भेजने की क्षमता में हस्तक्षेप करके काम करता है. बिफेंथ्रिन कृषि के आलावा एक घरेलू किटनाशक के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.
कस्टोडिया
कस्टोडिया एक दोहरा फफूंदी नाशक है जिसमे दो सक्रिय तत्वों का समावेश किया गया है. एक है अजोस्ट्रोबीन और दूसरा है टेब्युकोनाझोल.
अजोस्ट्रोबीन एक प्रणालीगत फफूंदीनाशक है जो पत्तियों के अंदर समाकर फफूंद को रोखता है तथा फसल में सुधार भी लाता है. यह सक्रिय तत्व फफूंदी के मायटोकोंड्रीया में इलेक्ट्रोन के बहाव को रोखता है.
टेब्युकोनाझोल एक फफूंदी की सेल वाल के बनने में गडबडी करता है जिससे फफूंद प्रजनन नही कर पाती. यह भी एक प्रणालीगत फफूंदीनाशक है.
कस्टोडिया का इस्तेमाल अंगूर, प्याज, टमाटर, मिर्च, धान और गेहू में आनेवाले फफूंदजनित रोग जैसे डायबैक, डाउनी, झुलसा, फलो की सडन, पावडरी, परपल (बेंगनी) ब्लोच, सीथ ब्लाइट, येलो रस्ट के नियंत्रण में किया जाता है.
शमीर
शमीरमे टेब्युकोनेझोल और केप्टन जैसे दो उमदा फफूंदीनाशक होने से फोर्म्युला बेहद असरदार है. यह प्रणालीगत होने के साथ साथ ट्रांसलेमिनार होने से फसल चमकदार करता है. इसके सक्रिय घटक फफूंद के धागों की वृद्धि और स्पोअर का जर्मिनेशन रोखता है. फफूंद का जीवनचक्र रुक जाता है.
शमीर का इस्तेमाल मिर्च में आनेवाले रोग जैसे पत्तियों के दागधब्बे, ब्लाईट, फलसडन और पावडरी मिल्ड्यू को रोखता है. सेब के स्केब को रोखने की लिए भी इसे इस्तेमाल किया जाता है.
फफूंदनाशी होने के साथ साथ शमीर फसल में दमखम लौटाकर पुर्तिला बनता है.
जमीर
अदामा का जमीर एक नया फॉर्म्युला है जिसमे टेब्यूकोनेझोल के साथ प्रोक्लोराझ है। प्रोक्लोराझ एक बिलकुल नया सक्रिय घटक होने से प्रतिकार करने वाले फफूंद के नियंत्रण हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है। झमीर का इस्तेमाल मिर्च मे आनेवाले डायबेक तथा फलसड़न के रोकथाम के लिए किया जा सकता है।
फ्लेमबर्ग
फ्लेमबर्ग में तैयार एमिनो एसिड होते है जो पौधोंके श्वसन प्रकिया में अंतर्भूत हो जाते है. इससे पौधोंको प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रकाश संश्लेशण षण करने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है.
- फ्लेमबर्ग अमीनो एसिड और अमीनो एसिड की छोटी श्रृंखला पर आधारित जैव-उत्तेजक है
- यह लंबे प्रोटीन को तोड़कर प्राप्त किया जाता है क्योंकि अमीनो एसिड और छोटी श्रृंखलाए पौधों की कोशिकाओं द्वारा आसानी से आत्मसात कर लिए जाते हैं।
- फ्लेमबर्ग को पत्तियों या जड़ों द्वारा आत्मसात किया जा सकता है।
- यह अन्य पौधों के पोषक तत्वों के सह-आत्मसात को बढ़ाता है
- फ्लेमबर्ग फसल को जैविक और अजैविक तनाव का सामना करने के लिए शक्ति देते है।
- इसमें अमीनो एसिड की पूरी श्रृंखला होती है।
- फसल की ताक़त और उपज में वृद्धि करता है।
- फसल एक समान और बेहतर गुणवत्ता की होती है।
- पौध संरक्षण रसायनों के साथ मिलाया जा सकता है।
आशा करते है के आपको यह लेख और इसमे दीयी गई जानकार पसंद आयी होगी. इस जानकारी के लिए हमने अदामा कंपनी और केन्द्रीय किटनाशक बोर्ड से प्राप्त कीयी है.
एमेजन के साइट से पता चलता है के किसानों ने अदामा के उत्पादनों को ४ स्टार तक के रेटिंग दिए है. अनेक उत्पादनों पर ४० प्रतिशत तक छूट (यहा क्लिक करे) भी है.
इस लेख को अपने मित्र, परिजनों मे अवश्य शेअर करे.