
प्रोपेनोफॉस की कडवी सच्चाई!
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प्रोफ़ेनोफॉस एक लहेसुन जैसे गंध वाली ऑर्गेनोंफॉस्फेट स्पर्शीय दवा है। यह तंत्र कोशिकाओ द्वारा सवेदना वहन को रोखता है. परिणाम स्वरूप किटोको पक्षाघात या लकवा (Paralysis) होता है. इसे वर्ष १९८२ मे अमेरिका मे लाएसेन्स दिया गया। थोड़ा अधिक विषैली होने के कारण, भारत मे इसके ५० प्रतिशत फॉर्म्युले का उपयोग, मात्र कपास मे होता था।
लेकिन कंपनियों ने, इसको दूसरे किट नाशकों से मिलाकर नए फॉर्म्युले बनाए। इनकी उपयोगिता का अभ्यास करने के बाद नए फॉर्म्युलोंको, मिर्च और मक्के मे उपयोग करने कि इजाजत दीयी गई है। बॉलवर्म, फालआर्मीवर्म जैसी सूँडीया, फुदका/जैसिड, महू/एफिड, तैला/थ्रिप्स, सफेद मक्खी जैसे चूसक किट और लाल-पीले मकड़ी के नियंत्रण मे यह दवाए असरदार है।
कपास में प्रोपेनोफोस ५० प्रतिशत का, इस्तेमाल बेन्जो, करीना, जश्न, खामोश, प्रहार, प्रुडंट, केप्चर, केमक्रोन, और प्रोफिगन, नाम से किया जाता रहा.
लेकिन वक्त के साथ प्रोपेनोफोस ५० प्रतिशतका असर कम होने से बैंजो सुपर, परमिट -99, रोकेट, केमक्रॉन प्लस, किलक्रॉन प्लस, प्रोफिगन प्लस इन नामों से प्रोपेनोफोस ४० प्रतिशत, के साथ सायपरमेंथ्रीन, ४ प्रतिशत का उपयोग होने लगा.
सायपरमेंथ्रीन एक मानव निर्मित लेकिन नैसर्गिक कीटनाशक पायरेथ्रिन से प्रेरित है. यह एक व्यापक क्षमता (broad spectrum) वाला तांत्रिककोशिका मारनेवाला (nerve toxin) होने से फसल के दुश्मन कीटो के साथ साथ मधुमक्खि जैसे मित्र कीटोके लिए भी खतरा है. इसके बार बार छिडकाव से इसको सहने वाले कीटो की संख्या बढने लगती है, इसीलिए यह जल्द ही बेअसर हो जाता है.
केन्द्रीय किटनाशक बोर्ड द्वारा प्रोपेनोफोस - सायपरमेंथ्रीन के फोर्म्युले को सिर्फ कपास में इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था. इसके चलते मिर्च के लिए कम्पनियों ने प्रोपेनोफोस-फेनपायरोक्सीमेंट के संयोग का इस्तेमाल किया.
बाजार में प्रोपेनोफोस, ४० % + फेनपायरोक्सीमेंट २.५ % यह फोर्म्युला इटना, ओरेक्स गोल्ड ओर फोसमाइट नामसे प्रचलित है.फेनपायरोक्सीमेंट एक स्पर्शीय मकड़ी नाशक है जो कोशिकाओं में ऊर्जा निर्मिती करने वाले माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य में बाधा पहुचाता है. उर्जा निर्मिती में अटकाव होने से किट मरने से पहले उसमे लकवा होता है. इस फोर्म्युले का उपयोग मिर्च में आनेवाले तैला, मकड़ी या माईट, सफेद मक्खी, और फल छेदक इल्ली, के नियंत्रण के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति है. अन्य फसलों में इसका इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. कपास में मकड़ी के समस्या गंभीर नही होती इसलिए कपास में इसका इस्तेमाल नही किया जाता.
हालही में बाजार में प्रोपेनोफोस ३५ प्रतिशत के साथ, इमामेंक्टिन १.५ प्रतिशत का कोम्बीनेशन, वेलेक्टीन नाम से उपलब्ध हुआ है. मिटटी में पाए जाने वाले जीवाणु से प्राप्त एबामेंक्टिन से इमामेंक्टिन बनाया जाता है. यह तांत्रिक कोशिकाओं द्वारा होने वाले सन्देश वहन को रोखता है और इल्लियों के नियंत्रण में बेहद असरदार है. इसके उपयोग की इजाजद कपास और मिर्च में आनेवाले कीटों के आलावा, मक्के में आनेवाले फ़ॉल आर्मीवर्म के नियंत्रण के लिए भी दियी गयी है.
प्रोपेनोफोस पर आधारित सभी दवाओं में प्रोपेनोफोस ३५ % + इमामेंक्टिन १.५ % कोम्बीनेशन सबसे अधिक प्रागतिक है. इसमें प्रोपेनोफोस का अनुपात कम है. इमामेंक्टिन जैसा प्राकृतिक घटक इस्तेमाल हुआ है. इसके आलावा, दोनों सक्रिय घटकों का जोड़ ४० से कम होने से इसके इस्तेमाल से रेसीड्यू आने तथा किटोमें प्रतिकार क्षमता विकसित होने की आशंका कम होती है.
यह एक डब्ल्यू डी जी फोर्म्युला होने से इसमें किसी सोल्व्हेंट का उपयोग नही हुआ है. पर्यावरण और इस्तेमाल के लिए यह फोर्म्युला अन्य इ. सी. फोर्म्युलो से उमदा है.
फ़ॉल आर्मीवर्म के पिछले फैलाव के बाद अब यह किट देश के विविध हिस्सों में आवासित हो रही है. मक्के के अलावा अन्य फसलों में भी इसका असर बढ़ रहा है. इनमे आप वेलेक्टीन का प्रयोग करके देख सकते है.
अगर आपने उपरोक्त किसी भी दवा का इस्तेमाल किया है, तो आपका अनुभव कमेन्ट में लिखे, जो अन्य किसान भाइयों के काम आएगा.