
कम खर्चीले और उमदा किटनाशक पर मिल रही है भारी छूट!
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किसानी करते हुए, मुनाफा कमाने के लिए, हिसाब किताब करना एक अहम बात है। जब किसान किसी भी फसल के बारे मे सोचता है, उसके खर्चे शुरू हो जाते है। जब हर फैसला किफायती होगा तो मुनाफा मिलेगा,, फिर चाहे वह फैसला मिट्टी तैयार करने का हो, बुवाई का हो, या कटाई का हो! इस लेख के माध्यम से ढेर सारी फसलों मे कम खर्चीले और उमदा किटनाशक की बात करेंगे। और बात करेंगे इस किटनाशक पर मिल रही छूट और ऑफर्स की।
रीसेट एग्री डॉट इन यह वेबसाइट आपको उमदा जानकारियों के साथ साथ दुनिया के सबसे बड़े शिपिंग पार्टनर के ऑफर्स और सेवाओं की जानकारी देती है। आप इसका अवश्य लाभ उठाए।
डायफेन्थियुरोन एक तरह का कीटनाशक है जो कई तरह के कीड़ों जैसे माइट्स, सफेद मक्खी और थ्रिप्स को मारता है। यह कीड़े के शरीर में जाकर उनकी एनर्जी बनाने की प्रक्रिया को रोक देता है जिससे कीड़े लकवा होकर मर जाते हैं।
यह दवाई 1980 के दशक में सिबाजीगी (अब सिनजेन्टा) कंपनी ने बनाई थी। 1988 में इसे पहली बार इस्तेमाल करने की अनुमति मिली। जो पेगासस नामसे बेची जा रही है।
डायफेन्थियुरोन एक प्रो-इन्सेक्टिसाइड है, यानी यह अपने असली रूप में जहरीला नहीं होता। कीड़े के शरीर में जाने के बाद यह अपने सक्रिय रूप में बदल जाता है और कीड़े को मार देता है।
हालाँकि, यह दवाई कुछ देशों में पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने के कारण प्रतिबंधित है। यह स्तनधारियों के लिए थोड़ी जहरीली है और फायदेमंद कीड़ों और जलीय जीवों पर भी बुरा असर डाल सकती है। यूरोपीय संघ ने इसे इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी है क्योंकि उन्हें डर है कि यह पर्यावरण और इंसानों की सेहत पर बुरा असर डाल सकता है।
डायफेन्थियुरोन कई रूपों में उपलब्ध है, जैसे कि सस्पेंशन कंसंट्रेट, वेटेबल पाउडर और ग्रेन्युल। इसे पत्तों पर स्प्रे करके, मिट्टी में मिलाकर या बीजों के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
डाइफ़ेंथियूरॉन 50% डब्ल्यू पी फॉर्म्युला पेगासस नाम से बेचा जाता है। यह कीटों को लकवाग्रस्त करते हए 3 से 4 दिनों मे मार देता है। किसान इसका उपयोग कपास, पत्ता गोभी, मिर्च, बेंगन, इलायची, तरबूज, भिंडी, टमाटर और नींबू मे कीटों के नियंत्रण के लिए करे। इसके फॉर्म्युले मे सक्रिय घटक के अलावा उम्दा दर्जे के पानी मे भिगोने और फैलाने वाले घटकों की जरूरत होती है। सिंजेंटा के पेगासस मे आपको सक्रिय घटक की पूरी मात्रा और उम्दा फॉर्म्युले की गैरंटी मिलती है।
कपास मे पेगासस का उपयोग: कपास मे आनेवाले सफेद मक्खी, महू, तैला और फुदके के नियंत्रण के लिए 1 ग्राम प्रति लीटर के औसत से 10 से 15 दिनों के अंतराल मे दो बार छिड़काव करे। कपास मे आनेवाली यह किटे चूसक कीटों मे शामिल है । अगर हम इन कीटों का प्रकोप कपास पर हामी होने से पहले पहचानकर पेगासस का प्रयोग करे तो अन्य महंगे किट नाशकों की

जरूरत नहीं पड़ेंगी। इसके लिए हमे स्टिकी ट्रैप की मदत लेनी होगी। कपास के बुवाई के 10 दिन मे प्रति एकड़ 20 ट्रैप लगाए और हर पाचवे दिन इनका निरीक्षण करे। अगर इसपे आपको चूसक किट चिपके हुए मिलते है तो तुरंत पेगासस का प्रयोग शुरू करे। आप जानते ही हो के यह चूसक किट अकेली नहीं आती, इसके घाव मे फफूंद का प्रकोप होता है। इसलिए आप साथ मे कत्यायानी ऑर्गेनिक का अजोझोल 1 मिली प्रति लीटर तथा मोनोसोडियम ग्लूटामेट 1 ग्राम प्रति लीटर का प्रयोग करे। मोनोसोडियम ग्लूटामेट से फसल की रक्षाप्रणाली जागरूक होने के साथ साथ खर्चीले प्लांट टॉनिक की जरूरत को नकारा जा सकता है।
पत्ता गोभी मे पेगासस का उपयोग: डायमंडबैक मोथ (diamondback moth), जिसे वैज्ञानिक भाषा में प्लूटेला ज़ाइलोस्टेला (Plutella xylostella) कहते हैं, एक छोटा सा मगर बेहद खतरनाक कीट है। यह पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली जैसी सब्जियों को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इसकी मादा पत्तों के नीचे की तरफ छोटे-छोटे अंडे देती है। इन अंडों से निकलने वाले लार्वा (larvae) यानी छोटे कीड़े पत्तों को कुतर-कुतर कर खा जाते हैं। इससे पत्तों में छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं और पौधा कमजोर पड़ने लगता है।
समय रहते इस कीट पर काबू नहीं पाया गया तो पूरी फसल बर्बाद हो सकती है। यही वजह है कि किसानों के लिए यह एक बड़ी समस्या है। इसकी एक और खासियत है कि यह बहुत तेजी से कई पीढ़ियाँ पैदा कर सकता है, यानी साल में कई बार फसल पर हमला कर सकता है।
रोपाई के बाद हर 15 दिन मे नीम तेल या बैसिलस थुरिंजिएंसिस (Bt) जैसे जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करें अगर फिरभी लक्षण दिखाई देते है तो 15 दिन के अंतराल मे दो बार पेगासस 1 ग्राम प्रति लीटर का प्रयोग करे।
मिर्च मे पेगासस का उपयोग:
किसान भाइयों, माइट्स एक बहुत ही छोटा लेकिन खतरनाक कीट है जो आपकी फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। ये माइट्स पत्तों का रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देते हैं, जिससे पौधा बढ़ नहीं पाता और फल भी कम लगते हैं। गर्मी और सूखे मौसम में माइट्स का प्रकोप ज्यादा होता है। बारिश के मौसम में इनकी संख्या कम हो जाती है। खेत में नमी बनाए रखने से माइट्स के प्रकोप को कम किया जा सकता है। फव्वारा सिंचाई या पानी का छिड़काव करने से पौधों के आसपास नमी बनी रहती है, जिससे माइट्स को पनपने में दिक्कत होती है।
माइट्स का प्रकोप अक्सर फसल के एक छोर से शुरू होता है और हवा की दिशा मे फैलता है। फलस मे घूमते हुए लक्षणों का अभ्यास करे।
कैसे पहचानें माइट्स का प्रकोप?
- पत्ते नीचे की ओर मुड़ जाते हैं और सिकुड़ जाते हैं।
- पत्ते पीले और भूरे रंग के हो जाते हैं, और उनपर छोटे-छोटे दाने दिखाई देते हैं।
- पत्तों का विकास रुक जाता है, और नए पत्ते भी छोटे रह जाते हैं।
- पौधे की बढ़वार रुक जाती है, और फल भी कम और छोटे लगते हैं।
लक्षण दिखाई देते ही पेगासस 1 ग्राम प्रति लीटर के औसत से छिड़काव करे। 14 और 21 दिनों के बाद दूसरा और तीसरा छिड़काव करना अनिवार्य है।
उपरोक्त जानकारी के आधार पर आप बेंगन, तरबूज, भिंडी, टमाटर मे सफेद मक्खी और माइट्स, तथा इलायची मे केपसूल छेदक का नियंत्रण कर सकते है।
नींबू, संतरा, मौसम्बी में पेगासस का उपयोग: नींबू वर्गीय पौधों में कई तरह के माइट्स (सूक्ष्म कीड़े) लग सकते हैं, जैसे कि सिट्रस रस्ट माइट, सिट्रस रेड माइट और सिट्रस बड माइट। ये माइट्स पौधे के पत्तों, फलों और कभी-कभी कलियों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ये माइट्स अक्सर गर्मी और सूखे मौसम में, खासकर बसंत और गर्मियों में ज्यादा दिखाई देते हैं।
कैसे पहचानें?
- सिट्रस रस्ट माइट: फलों पर भूरे रंग के धब्बे या जंग लगने जैसे निशान दिखते हैं। पत्ते पीतल जैसे रंग के हो सकते हैं।

- सिट्रस रेड माइट: पत्तों पर चांदी जैसे धब्बे या सफेद निशान दिखते हैं, जिससे पत्ते झड़ सकते हैं।
- सिट्रस बड माइट: कलियों में सूजन और विकृति दिखाई देती है। नई टहनियाँ छोटी रह जाती हैं और पत्ते विकृत हो जाते हैं।
माइट्स को और नुकसान को देखने के लिए आप मेग्नीफ़ाइंग लेन्स का उपयोग कर सकते हैं।
कैसे बचाव करें?
- निगरानी: नियमित रूप से अपने नींबू के पौधों की जाँच करें कि कहीं माइट्स तो नहीं लगे हैं। जल्दी पता चलने पर उनसे निपटना आसान होता है।
- देखभाल: गिरे हुए पत्तों और कचरे को हटाकर बगीचे को साफ रखें। ज्यादा नाइट्रोजन खाद डालने से बचें, क्योंकि इससे माइट्स बढ़ सकते हैं।
- जैविक नियंत्रण: ऐसे माइट्स (शिकारी माइट्स) लाएँ जो इन हानिकारक माइट्स को खाते हैं, जैसे कि Phytoseiulus persimilis।
- बागवानी तेल: माइट्स को मारने के लिए बागवानी तेल का छिड़काव करें। ये तेल छोटे माइट्स और उनके अंडों पर सबसे ज्यादा असरदार होते हैं।
अगर माइट्स की संख्या बहुत बढ़ जाए, तो रासायनिक नियंत्रण जरूरी हो सकता है। इसके लिए कई तरह के रसायन उपलब्ध हैं, जैसे कि: एबामेकटिन, स्पीरोमेसीफेन, फेनपायरोकसीमेट।
लक्षण दिखाई देते ही पेगासस 2 ग्राम प्रति लीटर के औसत से छिड़काव करे। हर वृक्ष पर 2 से 3 लीटर घोल का छिड़काव होना जरूरी है, 14 और 21 दिनों के बाद दूसरा और तीसरा छिड़काव करना अनिवार्य है।
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