
टकाटक दवा - चकाचक मिरची और कपास!
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किसान भाइयों, रिसेट एग्री डॉट इन पर इस लेख के माध्यमसे, मिरची और कपास में अधिकतम उत्पादन पाने हेतु उपयोगी "तकाफ" दवा के बारे में जानकरी लेंगे.
कपास और मिर्च जैसे फसलों में रसचूसने वाले कीटक बेतहाशा नुकसान करते है. जब यह फसले तेजी से बढ़ रही होती है, तब इनमे रसोंका प्रवाह बड़े तेजी से होता है. जडो से पानी और उर्वरकों के घटक पत्तियों और टहनियों के और प्रवाहित होते है. सूरज की ऊर्जा को सोककर शर्करा से भरा जो रस तयार होता है वह पत्तियों से टहनियों और जडो के और बहेता है. इस दरम्यान फसल फुल और फलों के बहार के लिए खुदको तैयार करती है. ठीक इसी वक्त माहू (अफिड), फुदके (लीफ हॉपर), तैला (थ्रिप), सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाय) और मकड़ी (माईट) जैसे कीड़े फसल पर पनपना शुरू करते है. वे पत्तियों और टहनियों को काटकर उसमे बने ज्यूस को पीना शुरू करते है. ज्यूस से पानी को स्त्राव के माध्यम से अलग कर पत्तियों पर छोड़ते है. यह स्त्राव चिपचीपे होने से इसपर बेक्टेरिया, फफूंद और चीटिया लग जाती है. जिस तरह मच्छर मलेरिया का प्रसार करते है वैसेही सफेद मक्खी जैसे रस चूसने वाले किट व्हायरस को एक पौधे से दुसरे पौधे तक फैलाते है.
शुरुवात के समय जब इन किटोकी संख्या कम होती है तब फसल साफ़ सुधरी दिखाई देती है. किट आँखोंसे नजर नहीं आती. लेकिन कीटोको उस वक्त ढेर सारा पोषण उपलब्ध होता है तो वह तेजी से प्रजनन शुरू करते है. दिन दुने और रात चौगुने बढने लगते है. इनकी संख्या १०-१२ दिन में हजारों गुना बढती है. इनकी संख्या बढने से, इनके माध्यम से फैलने और पनपने वाले बेक्टेरिया, फफूंद, चीटिया और व्हायरस भी फसल पर हामी होने लगते है. १३ से २५ दिनों में फसल पूरी तरह तहसमह्स हो जाती है. पत्तिया दागदार हो जाती है. टेढ़ीमेढ़ी हो जाती है. पौधा झुलसने लगता है. ऐसे फसल में फुल-फल कम लगते है. उपज कम हो जाती है. वक्त और लागत निष्फल हो जाते है.
इस समस्या को ध्यान में रखकर अदमा आपके फसलके लिए ट्काफ दवा ले आया है. यह दवा एक सस्पेंशन घोल है जो पर्यावरण और उपयोग कर्ता को सोल्वंट से बचाता है. इसमें डायफेनथ्युरोन तथा बायफेनथ्रीन यह दो बेहद असरदा सक्रिय घटक है. पौधे जब तेजी से बढ़ रहे हो तभी टकाफ का १.२५ मिली प्रति लिटर के हिसाब से छिडकाव करे. १५ लिटर के एक पम्प में २० मिली दवा की जरूरत होगी जिसकी लागत ६० रु से कम है.
अगर आप ट्काफ के छिडकाव से चुक जाते है और फसल में संक्रमण फ़ैल जाता है तो आपको इस दवा का छिडकाव १५ दिन के अन्तराल से दुबारा करना होगा. इसके आलावा अब आपको फफूंदी नाशक, बेक्टेरियानाशक भी साथ में मिलाने होगे. अगर फसल बेहद खराब हो चुकी हो तो आपने उर्वरक भी देना चाहिए. इस तरह लागत तिन से चार गुना बढ़ जाती है और उपज भी उतनी अच्छी नही होगी.
डायफेनथ्युरोन एक प्रणालीगत तथा स्पर्शीय कीटनाशक है। यह खुद सक्रिय नही होता. आवेदन के बाद, सूरज के रौशनी या जैविक प्रक्रिया से इसका रूपान्तर कार्बोडाइमाइड में होता है. यह कार्बोडाइमाइड सक्रिय होता है जो कीटों में माइटोकॉन्ड्रिया के कामकाज को रोकता है। माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं का पावर हाउस है। माइटोकॉन्ड्रिया आपके मोबाइल के पावर सेल की तरह है। डायफेनथ्युरोन में पक्षियों, स्तनधारियों (इन्सान, बिल्ली, चूहा) और लाभकारी कीड़ों के लिए कम विषाक्त है। यह शिकारी मकड़ी के लिए केवल थोड़ा विषैला होता है। यह मछली के लिए विषैला होता है लेकिन मछली को नुकसान नहीं पहुंचाता क्योंकि पानी में यह तेजी से विघटित होकर बेअसर हो जाता है।
बिफेंथ्रिन एक व्यापक असर दिखानेवाला कीटनाशक है. यह सेवंती के फुले में पाए जाने वाले किटनाशक से सम्बंधित है. बिफेंथ्रिन तंत्रिका कोशिका की सामान्य संकेत भेजने की क्षमता में हस्तक्षेप करके काम करता है. बिफेंथ्रिन कृषि के आलावा एक घरेलू किटनाशक के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.
किसान भाइयो फसल को चकाचक रखने हेतु किट फैलने से पहले टकाटक "ट्काफ" का छिडकाव अवश्य करे. कमेन्ट में आप सवाल पूछ सकते है.
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