papaya disease

पपीते को रोगोंसे बचाते हुए, बनाए अच्छा मुनाफा

पपीता भारत में एक लोकप्रिय फल है और इसे देश के कई अलग-अलग क्षेत्रों में उगाया जाता है। हालांकि, पपीते के पौधे कई बीमारियों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिससे किसानों को काफी नुकसान हो सकता है।

भारत में पपीते को प्रभावित करने वाले कुछ सबसे आम रोगों में शामिल हैं:

पपीता रिंगस्पॉट रोग (PRSD): PRSD एक वायरल बीमारी है जो एफिड्स द्वारा फैलती है। यह पपीते की सबसे गंभीर बीमारियों में से एक है और इससे 100% तक उपज में कमी आ सकती है। PRSD के लक्षणों में पत्तियों पर मोज़ेक पैटर्न, फलों पर रिंगस्पॉटिंग और पौधों का स्टंटिंग शामिल हैं।
पपीता लीफ कर्ल रोग (PLCD): PLCD एक और वायरल बीमारी है जो सफेद मक्खियों द्वारा फैलती है। यह भी एक बहुत ही गंभीर बीमारी है और इससे 90% तक उपज में कमी आ सकती है। PLCD के लक्षणों में पत्तियों का कर्लिंग और पीला पड़ना, पौधों का स्टंटिंग और फलों की विकृति शामिल हैं।
पपीता मोज़ेक रोग (PMV): PMV एक वायरल बीमारी है जो एफिड्स द्वारा फैलती है। यह PRSD या PLCD जितना गंभीर नहीं है, लेकिन यह अभी भी उपज में उल्लेखनीय कमी का कारण बन सकता है। PMV के लक्षणों में पत्तियों पर मोज़ेक पैटर्न, पौधों का स्टंटिंग और फलों की विकृति शामिल हैं।

वायरल बीमारियों के नियंत्रण हेतु एफीड, सफेद मक्खी जैसे वाहकों का नियंत्रण करे। इसके लिए नामचीन कंपनियों के अत्याधुनिक दवाईयों का प्रयोग करे। जैसे इमिडा, डेंटाँसु 

एन्थ्रेक्नोज़: एन्थ्रेक्नोज़ एक कवक रोग है जो पपीते के पौधे के सभी भागों को प्रभावित कर सकता है। यह बारिश के मौसम में सबसे आम है और इससे फलों को काफी नुकसान हो सकता है। एन्थ्रेक्नोज़ के लक्षणों में फलों, पत्तियों और तनों पर धंसे हुए, भूरे रंग के धब्बे शामिल हैं।
पाउडरी मिल्ड्यू: पाउडरी मिल्ड्यू एक कवक रोग है जो पपीते के पौधे के सभी भागों को प्रभावित कर सकता है। यह शुष्क मौसम में सबसे आम है और इससे पत्तियों और फलों को काफी नुकसान हो सकता है। पाउडरी मिल्ड्यू के लक्षणों में पत्तियों, फलों और तनों पर एक सफेद पाउडरी कोटिंग शामिल है।

दाग धब्बों के नियंत्रण हेतु नेटिवों, कोनिका, क्यूप्रोफिक्स जैसी दवाइयों का इस्तेमाल करे।

तना गलन - इस रोग का कारण पीथियम एफिनडरमेटम फाइटोफ्थरा पामीबोरा नामक फफूंद है जिसके कारण पौधे भूमि के पास तने का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है धीरे-धीरे गलन जड़ तक पहुँच जाती है। इस कारण फफूंद सूख जाती है और पौधा मर जाता है। प्रबंधन के लिए जलनिकास में सुधार करें तथा रोग ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर हटा दें उसके पश्चात् पौधों पर 1 प्रतिशत बोर्डो मिश्रण या कॉपर आक्सीक्लोराइड 2 ग्रा / ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा ड्रेंचिंग करें।


डम्पिंग ऑफ (आद्र गलन ) - यह रोग पपीते में नर्सरी अवस्था में आता है जिसका कारण पीथियम एफिनडरमेटस, पी. अल्टीमस फाइटोफ्थोरा पामीबोरा तथा राइजोक्टोनिया स्पी. के कारण होता है। पौधे जमीन की सतह के पास से से गलकर मरने लगते है। रोग से बचने के लिए पपीते के बीजों का उपचार करें तथा नर्सरी को फार्मेल्डिहाइड के 2.5 प्रतिशत घोल से ड्रेंचिंग करें या उपचारित करें।

गलन जैसे रोगों के रोकथाम के लिए रिडो मिल गोल्ड, किटाझीन का प्रयोग करे।

पपीता भारतीय किसानों के लिए एक मूल्यवान फसल है और बीमारियों को रोकने के लिए पौधों की देखभाल करना महत्वपूर्ण है। बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए किसान कई काम कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • रोग मुक्त बीजों और पौधों का प्रयोग करें।
  • पपीते के पौधे अच्छी तरह से जल निकासी वाली मिट्टी में लगाएं।
  • पौधों को ज्यादा पानी न दें।
  • पौधों के आसपास नियमित रूप से निराई और गुड़ाई करे
  • पौधों का नियमित रूप से रोग के लक्षणों के लिए निरीक्षण करें।
  • किसी भी रोगग्रस्त पौधे को हटा दें और नष्ट कर दें।
  • कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए कवकनाशी और कीटनाशकों का प्रयोग करें।

यह भी महत्वपूर्ण है कि किसान पपीते के पौधों को प्रभावित करने वाली विभिन्न बीमारियों के लक्षणों से अवगत हों। यदि कोई किसान रोग के कोई लक्षण देखता है, तो उन्हें रोग को फैलने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।
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