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चने मे यूरिया देने की जरूरत क्यों आन पड़ी?

चने मे यूरिया देने की जरूरत क्यों आन पड़ी?

भारतीयों के खान पान मे चने महत्व अधिक है। अधिकांश लोग शाखाहारी होने से उनके प्रोटीन की जरूरत चने जैसे दलहनी उपज से पूरी होती है। चना स्वादिष्ट होने के साथ साथ प्रोटीन का महत्व पूर्ण श्रोत है!

दुनियामे चने का सर्वाधिक उत्पादन भारत मे होता है, जो ७० प्रतिशत है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र मे चने का उत्पादन सर्वाधिक है, लेकिन प्रती एकड उत्पादकता के मामले मे आंध्रा, बिहार और गुजरात सबसे आगे है।

चने मे युरिया

चने मे युरिया के उपयोग के बारे मे प्रश्न तब उठने लगे जब महाराष्ट्र के अमरावती विभाग मे चने के फसलमे नाएट्रोजन के पूर्ति के लिए किसनो को युरिया नही मिला. चने के फसल को नत्र नहीं दिया तो पत्ते पीले पड़ते है और उपज घटती है इसी अनुभव के चलते, किसान चने मे यूरिया देना चाहते है।

लेकिन युरिया की किल्लतसे परेशान किसानों को प्रशासन द्वारा बताया जा रहा है के चने की फसल हवा से नत्र प्रबंध करती है, इसीलिए इस फसल मे यूरिया देने की जरूरत नहीं है। यूरिया के इस्तेमाल से इस फसल मे सूँडी का प्रकोप होने की खतरा बढ़ता है।

एक तरफ किसानों को जरूरत है और दूसरे तरफ प्रशासन सिफारिश का हवाला देते हुए पल्ला झाड़ते नजर आ रही है।

जब हमेने महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहूरी तथा डॉ. पंजबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ अकोला द्वारा प्रकाशित सिफारिश को खोजा तो उनके नुसार प्रति एकड़ यूरिया २२ किलो यूरिया देना चाहिए! यह मात्रा अन्य फसलों के मुकाबले करीबन आधी है लेकिन सिफारिश तो है।


किसानों की मांग जायद नजर आ रही है।

बदलते परिवेश मे फसलों की उर्वरकों की जरूरत कम जादा हो सकती है। रसायनों का बेतहाशा इस्तेमाल और गुणवत्ता पूर्ण ऑर्गेनिक मेन्युअर के अभाव से मिट्टी के उर्वरकता मे कमी आ रही है। ऑर्गेनिक मेन्युअर से मिट्टी मे कार्बन की आपूर्ति होती है। इसी कार्बन का उपयोग कर मिट्टी मे सहयोगी जीवाणु पनपते है जो फसल को अलग अलग पोषक तत्व उपलब्ध कराते है। चने के जड़ों पर नाएट्रोजन पूर्तता करने वाले जीवाणु गाठे बनाते है जिससे चने को नाएट्रोजन की आपूर्ति होती है और बाहरी नाएट्रोजन के श्रोत जैसे यूरिया की जरूरत नहीं होती।

आज महाराष्ट्र के चने के किसान और प्रशासन मे जो तू तू मै मै चल रही है इसकी असल जड़ मिट्टी की घटती उर्वरकता है। किसान और सरकार को मिलकर मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने हेतु ऑर्गेनिक मेन्युअर के उपलब्धता पर जोर देना होगा। ऐसा ना करने पर आज की छोटी समस्या नासूर बनने का खतरा है।

आपका विश्लेषण क्या है? कमेन्ट मे अवश्य लिखे! इस पेज को शेयर करना ना भूले!

धन्यवाद. 

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