क्या फसल को मिट्टी चढ़ाने से कोई फायदा होता है?
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फसल को मिटटी चढाने का काम सभी किसान भाई करते है. मक्के और गन्ने में यह एक आम काम है. किसान एक परंपरा अनुसार इस प्रक्रिया को करते है. कोई कहता है के इससे फसल अच्छे से खड़ी रहती है, हवा से गीर नहीं हो जाती। कोई सोचता है के ऐसा करने से घास निकल जाती है और फसल को फायदा होता है. लेकिन क्या इसका कोई फायदा होता भी है? चलिए जानते है क्या है सच्चाई।
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कृषि महाविद्यालयों में इस का तकनीकी अभ्यास किया गया है. जिससे पता चलता है के फसल को मिटटी चढ़ाने से फसल को गिरने से बचने और घास निकलने से भी अधिक लाभ मिलते है.
फसल को मिटटी चढ़ाने से एक नाली या फरो बन जाती है. जिसमे बारिश का पानी जमता है, या बहकर उसकी निकासी हो जाती है. फसल को जो मिटटी चढ़ाई गई है वहा यह पानी नहीं पहुंचता है लेकिन भरता नहीं। तो इस मिटटी के टिले में पानी भी होता है और हवा भी होती है जो जड़ों को बढ़ने में मद्त करती है. हवादार मिटटी के इस टीलेमें अझोटोबैक्टर, फोस्पेट, पोटाश बेक्टेरिया जैसे जीवाणु फसल को नाइट्रोजन, फोस्पेट और पोटाश उपलब्ध कराते है. इसके आलावा शुडोमोनास, ट्रायकोडर्मा जैसे सूक्ष्मजिव भी पनपते है. जो फसल को पोषण घटकों के साथ साथ संरक्षण भी प्रदान करते है. यह जीवाणु फसल के प्रतिरक्षा प्रणाली याने इम्युनिटी को भी जागृत करते है. फसल के अंदर और बाहर बढ़कर फसल को पानी और फोस्पेट सप्लाय करने वाले मायकोरायझा के वृद्धि को भी फायदा मिलता है. वह जड़ों से जुड़ते हुए मिटटी के गहरी परतोसे भी पोषक घटक और पानी फसल के लिए ले आती है.
अगर मिटटी नहीं चढ़ाई होती तो मिटटी समतल रहती, पानी में डूबी रहती तो मिटटी से हवा निकल जाती और सूक्ष्मजीवोंका काम नहीं हो पाता। जिसके बजह से फसल को जड़ गलन, कॉलर रॉट जैसी समस्या का सामना करना पड़ता।
मिटटी चढ़ाने के दरम्यान मिटटी भूरभूरी होती है. जड़ों के आस पास की मिटटी ठोस ना होने से जड़े अच्छे से फैलती है और भरपूर पोषण लेती है.
फ़रो के तले की मिटटी जो पानी के अंदर रहती है वो ठोस हो जाती है लेकिन जड़ो के आस पास की मिटटी हवादार और भूर भूरी रहती है जो जड़ों के कार्यकुशलता को बढ़ावा देती है.
फरो/नाली से बारिश का पानी निकलने में तथा जरूरत पड़ने पर पानी की सिचाई करने में भी आसानी होती है.
किसान भाई मिटटी चढ़ाने के काम को बिलकुल भी हल्के में ना ले. अवश्य करे.
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