
दुनियाभर फसलोंकी उपज घटेगी!
Share
रिसेट एग्री डॉट इन पर किसान भाइयों का स्वागत है. कला, वाणिज्य और विज्ञान ने हमारी जिंदगी पर गहेरा असर छोड़ा है. कला हमे जीना सिखाती है, वाणिज्य हमे लेनदेन में मदत करता है और विज्ञानं हमे इस दुनिया को समझने में और उसके उपयोग में मदत करता है. जरूरी नही के यह तिन शाखाए हमे बेहतर बनाए. हमे बेहतर बनने के लिए हमारे समझबूझ की जरूरत होती है.
शुरुआत में विज्ञानिक प्रयोग छोटे स्तर पर होते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. वैज्ञानिक आज कल ऐसे अनेके प्रयोग करते है जो धरती और अन्तरिक्ष के स्तर पर किए जाए है. आजकल एक ऐसेही प्रयोग की चर्चा हो रही है. यह प्रयोग हमारे जीवन पर, फसल पर , उपज पर गहेरा असर छोड़ सकता है.
इस लेख के माध्यम से हम पता करेंगे के दुनियाको बचाने के लिए वैज्ञानिक
- कोनसा वैश्विक प्रयोग करने जा रहे है?
- क्या वैज्ञानिक यह प्रयोग कर पाएंगे?
- क्या यह प्रयोग कामयाब होगा?
- क्या ऐसा प्रयोग करना उचित है?
- उसका हमारे फसल के उपज पर तथा हमारे आमदनी पर क्या असर हो सकता है?
बीते शतक से इंसान ने धरती के पेट में छिपे कार्बनिक इंधनोंका बेतहाशा इस्तेमाल किया है. अन्न, वस्त्र, आवास, विकास, विलास के चरम बिंदुओ को छूते हुए इंसान ने जो दिवाली मनायी है, वह अब इस धरती को ही दिवालिया बनाने के और ले जा रही है. संसाधनों का तेजी से किया गया उपयोग अब एक नासूर बनते जा रहा है. धरती के पेट में बसे कार्बनि पदार्थो के इस्तेमाल के बाद यह कार्बन वातावरण में समा जाता है. इस कारण वातावरण सूर्य की उष्मा की जमाखोरी करता है. इस जमाखोरी से वातावरण का औसत तापमान बढ़ रहा है.
धरती के औसत तापमान में बढ़ोतरी होने से उत्तर और दक्षिण ध्रुव पर जमे हुए बर्फ का पिघलना शुरू हो गया है. हर साल जितनी नई बर्फ बनती है, उससे अधिक बर्फ पिघलती है. इससे समुद्र के पानी का स्तर बढ़ रहा है और जमीन पानी में डूब रही है.
इस समस्या का हल दुनिया भर के वैज्ञानिक खोज रहे है.
- ऊर्जा के नये श्रोत खोजे जा रहे है जो कार्बनिक इंधनों के इस्तेमाल को कम कर पाए.
- वातावरण में फैलते कार्बन को जमा कर धरती के पेट में जमा करने की कोशिश भी चल रही है.
- कृषि वानिकी (एग्रो फोरेष्ट्री) के माध्यम से उजड़े जंगलों को फिरसे बसाने की कोशिश हो रही है.
लेकिन यह प्रयास वक्त के पैमाने में धीमे है. इससे धरती के तापमान में हो रहे बढोतरी को रोखने में वक्त लगेगा उस दौरान ढेर सारी जमीन, देश और बड़े शहर खारे पानी में डूब जाएंगे. हमे ऐसे विकल्प की खोज है जो उत्तर और दक्षिण ध्रुव पर पिघलते बर्फ को फिरसे जमाए.
अमेरिका स्थित येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता वेक स्मिथ के अगुवाई में वैज्ञानिक एक नये प्रयोग पर योजना बना रहे है.
इस योजना अनुसार, गर्मियों में , दोनों ध्रुवोंके अवकाश में, १२५ लड़ाकू विमानों को धरती से ४३ हजार फुट उड़ाकर १३००० किलो सल्फर डाय ऑक्साइड का एक पतली परत बिछाई जाएगी. यह पतली परत सूरज के किरणों को परावर्तित करेंगे. तापमान ठंडा रहेगा तो बर्फ का पिघलने का औसत कम हो जाएगा. ठण्ड में नई परत बनेगी. तो कुल जमा होते हुए ध्रुवों पर बर्फ फिरसे जमना शुरू हो जाएगा. एसेमे समुद्र में पानी का स्तर नही बढ़ेगा और धरती समुंद्र में डूबने से बच जाएगी. वैज्ञानिक मानते है के इस प्रयोग का कुछ भी बुरा असर हुआ तो वो दुनिया के कुल आबादी के १ प्रतिशत पर ही होगा. इस प्रयोग में ९१९ करोड़ रुपया खर्चा होगा जो बेहद कम है.
लेकिन दुनियाभर में इस प्रयोग का विरोध भी हो रहा है.
इस प्रयोग में भारी संख्या में उंची उड़ाने करनी पड़ेगी जो उपरी परतों में ढेर सारा ग्रीन हाउस गैसें छोड़ेगी. यह बड़ा नुकसान करेगा. इस तरह की छाव निर्माण करने से फसलों की उपज घटेगी. इतने बड़े पैमाने पर प्रयोग करने हेतु आंतरराष्ट्रिय सहयोग और सहमती की जरूरत होगी, जो मुश्किल है.
आनेवाले दिनों में भारत के वैज्ञानिक क्या सोचते है? क्या भारतीय किसानों के उपज पर इसका असर हो सकता है? क्या कुटनीतिक समीकरण बन सकते है? इन सारी बातों का खुलासा होगा. रिसेट एग्री डॉट इन के माध्यम से हम आपको जानकारी देते रहेंगे.
आप क्या सोचते है? कमेन्ट में अवश्य लिखे.
लेख को शेअर करना ना भूले, धन्यवाद!
Reference: The Economic Times