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चार एकड़ पपीतेसे एक करोंड की कमाई !

चार एकड़ पपीतेसे एक करोंड की कमाई !

किसान भाइयों, रीसेट एग्री आपका स्वागत है। आज बात करेंगे ऐसे यशोगाथा की जिसमे एक किसान ने चार एकड़ पपीते से एक करोड़ की कमाई की।  यह बात कोई मनघडन या झुटी  नहीं है। लेकिन इस सच्ची कहानी को एक झुट के निव पर खड़ा किया गया है। इस फसल का तीसरा वर्ष पूर्ण होनेपर इन्होंने फसल का बर्थ डे मनाया और फसल का अनुभव बताया। यह किसान खुद पौधशाला चलाता है और यह यशोगाथा उसके मार्केटिंग का हिस्सा हो सकता है, जो बिल्कुल भी गलत नहीं।

इसमे पत्रकार बार बार यह अधोरेखित करता है के इस फसल की आयु तीन साल नहीं होती। जो एक सफेद झुट है। ठीक से देखभाल और रखरखाव किया तो पपीते के पौधे ३ साल तक मुनाफा दे सकते है, यह कोई नई या असामान्य बात नहीं है।  

कोई भी फसल हो, उपज के लिए निवेश, मेहनत और वक्त की लागत होती है। अगर उपज से लागत और मुनाफा नहीं बनेगा, तो किसान मेहनत क्यों करे! 

पपीते की उपज के लिए मिट्टी की तैयारीसे लेकर फलों की बिक्री तक भारी निवेश करना पड़ता है। शुरूआती 7 से 8 महीने पौधे पनपने, बढने और फुल-फल जड़ने में चले जाते है. इस दरम्यान कोई भी उपज नही होती. इसके बाद फल निकलना शुरू होता है.

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पहले ६ से ७ माह तक किसान पपीते के बिच प्याज, लहसुन और गेंदा जैसी छोटे जड़ोंवाली सतही फसले लेकर संसाधन और वक्त का फायदा उठा सकता है. खरपतवार से बचने में भी मदत मिलती है और पपीते पर हुए खर्चे भी निकल जाते है. गेंदे से फुल के पैसे मिलेंगे, निमेटोड से इजाद मिलेगा और पौधे से शानदार खाद भी बनेगी. इस तरह शुरुवाती जोखिम को कम किया जा सकता है.   

अगर आप पपीते की फसल तिन वर्ष तक चलाना चाहते हो तो सबसे पहले उचित प्रजाति का चुनाव करना होगा. फिर फसल के जड़ों से लेकर नोक तक हर हिस्से का ध्यान रखना पड़ेगा। कसरती पहेलवान जैसे हर पेड़ के सारे अंग प्रमाण बद्ध और तंदुरुस्त रहेने चाहिए। उचित वक्त पर फूल और फल आने चाहिए, पत्तीया रोग मुक्त और हरिभरी रहेनि चाहिए। 

जलवायु परिवर्तन के कारण फसल को दर्जनो तरह के मौसम की  मार का सामना करना पड़ सकता है. तेज बारिश, धुप, ठंड, कोहरा, अत्यधिक नमी और अत्यधिक गर्मी ऐसे वातावरण से पेड़ों को बचाना पड़ेगा.

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शुरुआत की पूर्णतहा सड़ी  गोबर खाद, मायकोरायझा, बेसल डोस,  ऊंचे बेड, उमदा जलनिकासी, मल्चिंग पेपर, टपक सिचाई,  क्रोप कव्हर, टाइमटेबल अनुसार सूक्ष्मअन्नद्रव्यों के साथ फफूंदनाशी और किटनाशीयोंका छिडकाव, एन पि के युक्त वाटर सोल्युबल उर्वरक, केल्शियम, मैग्नेशियम, सल्फर युक्त खादों का फर्टिगेशन जैसे साधनों से लागत बढ़ेगी लेकिन पपीते के पौधों का आकार, फलों की संख्या और साइझ बी बेजोड़ बनेगी. 

ऐसी व्यवस्था होगी तो ना बारिश का पानी जमकर जड़े सड़ेगी नही. हवा मे नमी बनी तो भी फफूंद जनित रोग, चुसक किट और उनके माध्यम से फैलते व्हायरस प्रकोप नही कर पाएंगे.  

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अगर पौधों  को फरवरी में लगाओंगे तो शुरआती दिनों में उनको ठंढ की मार नही पड़ेगी. पौधे बचेंगे और ठीक तरह बढ़ेंगे. गर्मी अधिक हो तो सिचाई अधिक करनी होगी और मकड़ी के फैलाव को रोखने हेतु विशेष दवा का छिडकाव करना होगा.

किसान भाइयों, फसल के बारे मे हर मुद्दा एक वित्तीय मुद्दा होता है। खर्चे से बचेंगे तो उपज नहीं होगी, नुकसान होगा। अगर बेबजह खर्चे बढ़ाएंगे तो मुनाफा घटेगा। इसीलिए आपको हमेशा सजग और हिसाब से रहना होगा. एग्री सेक्टर में बनावटी (उंचे ब्रांड के नकली उत्पादन), मिलावटी और नकली (बेअसर) उत्पादनों की धडल्ले से बिक्री हो रही है. इसके लिए हमारे बिच के लोगोंको मुनाफे का लालच देकर हमारेही खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है. हर खरीद की पक्की रसीद ले. बिज, दवा, खाद की मात्रा ओरिजिनल पैकिंग के साथ बचाकर रखिए ताकि फायदा ना हो तो उसकी कम्प्लेंट कियी जा सके.  

एक बार पपीते निकलने लगेंगे तो आप फसल के फोटो निकालकर फेसबुक पर अवश्य डाले. आपके इन पोष्ट में सभी मित्र और जानपहचान के व्यापारी यों को टेग करे. फेसबुक पर दिल्ली, मुम्बई, पूना, बेंगलोर, हैदराबाद , चेन्नई, कोच्ची, कोलकता, आमदाबाद, सुरत, कानपुर, लखनो जैसे शहरों के फेसबुक ग्रुप होते है. इनकी सदस्यता लेकर यहा अपने पोष्ट को शेअर करे. पोष्ट में आप फोन नम्बर और आपका लोकेशन भी डाले ताकि लोगों को आपके उपज की जानकारी मिलने लगे. ऐसी पोस्ट आप हर दिन भी डाल सकते है. मार्केटिंग में शर्माना मना है. 

आजकल अनेक किसान बेमतलब ऑर्गेनिक खेती की बखान करते है. अगर आपने उर्वरक और दवाए इस्तेमाल कियी है तो ऑर्गेनिक का झुटा प्रचार ना करे. अगर आप दूर के मार्केट में माल बेचना चाहते हो तो विश्वास हासिल करना ही सबसे बड़ी योजना होती है. और आपका छुट किसीने पकड़ लिया तो विश्वास गुम हो जाएगा. 

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 अगर फसल लंबे वक्त तक उपज देती रही, तो आवर्ती लागत कम होकर, आवर्ती अर्जन बढेगा और अच्छा मुनाफा हात आएगा. पपीते के पेड़ में तीसरे वर्ष के बाद ज्यादा फल नही लगते. जेनेटिक पोटेंशीअल खत्म हो जाती है. पौधों की उम्र हो जाने से उनमे  बीमारिया भी बढती है, जिसका इलाज महंगा हो जाता है। इसलिए ३रे साल के बाद फसल निकाल देना उचित है।

अगर आप पपीते लगाना चाहते है तो कठिन परिश्रम, हिसाब और खुद के जिम्मेदारी पर मार्केटिंग की तैयारी करिए।  आपको आपके फसल का एक्सपर्ट बनना होगा। अगर आप हर छोटी मोटी समस्या के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहेंगे तो वो न जाने कहा आपकी जेब काट ले।

 

 

पपीते के फसल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:

फसल की जड़े नाजुक और सतह के पास होते है। इसलिए पानी बिलकुल भी ना जमने दे. 

मिटटी में ऑर्गेनिक कार्बन १ प्रतिशत के आसपास होना चाहिए . इसकी जाच करना बेहद आसान होता है. 

पपीते को गर्म और नमी की जरूरत होती है. ४० से ४५ डिग्री तक की गर्मी फसल आसानी से सहती है लेकिन 

पपीता सालभर लगाया जा सकता है लेकिन जनवरी-फरवरी सबसे उचित समय होता है. अगर मार्च में लगा रहे हो तो ३० प्रतिशत पौधे मर सकते है. खाली जगह भरने हेतु ३० प्रतिशत पौधे पहले से बनाकर या बुक करके रखे.

जिस क्षेत्र में आपने पहले पपीता लगाया हो वहा दुबारा पपीता ना लगाए. 

हर पौधे के लिए ४०-४५ स्क्वे. फिट जमीन लगती है तो एक एकड़ में  970 के आसपास पौधे लगेंगे. दो लाइनों के बेच से ट्रेक्टर गुजर पाए इतनी जगह रखे.  संख्या नियंत्रण से बागन हवादार भी रहेगा और सूरज की किरणे फलों पे ना पहुचने से फल बचेंगे. 

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बेड तैयार करने के १० दिन पहले ही अच्छे से जुताई करे. पानी के अच्छे निकासी हेतु ६०-७० सेमी तक की मिटटी की परत ठीक से तोड़े. इसके बाद मिटटी समतल करे, बेसल डोस मिलाकर फिर देड फुट उचा और ढाई फिट चौड़ा बेड बनाए. बेड पर रोलर घुमाकर समतल करे ताकि बेड में खाली हवा ना जमे. 

टपक सिचाई के लिये हर बेडपर दो समांतर लेटरल बिछाए जिसके ड्रीपर मी देड फिट कि दुरी हो. लेटरल के गरम् होने से पौधे चटक सकते है. इसलिए तार को उलटे यु आकार का बनाकर लेटरल को पौधे से १० से. मी. दूर रखकर दबाए.

रोपने से पहले बेड अंदर तक भिघोए जिससे बेड कि गर्मी निकल जाए.  इस वक्त आप खरपतनाशीका भी छिडकाव कर ले.

 

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आईस बेरी, ग्रीन बेरी, रेड लेडी (तैवान ७८६) यह तिन प्रजाति उपलब्ध होती है. इसमें से आइस बेरी और ग्रीन बेरी मीठी है लेकिन दूर तक ट्रांसपोर्ट नही हो सकती. इन्हें लोकल या जिले के मार्केट तक भेज सकते है. ७५ प्रतिशत क्षेत्र में रेड लेडी लगाए जिसे दूर तक भेजा जा सकता है. 

 पौधा १२ सेंटीमीटर का और छे पत्तों का मजबूत होना चाहिए. रोपाई शाम को चार बजे के बाद करे और पौधे के इर्द गिर्द की मिटटी अच्छेसे दबाए.

रोपाई के बाद एक माह तक हर दिन हर पौधे को करीबन १ लिटर पानी दे. दुसरे माह में दो लिटर पानी देना होगा.  किसी ड्रिपके निचे बोतल लगाकर आप पानी गिन सकते है. 

 

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पौधों को तेज गति ना बढने दे. डंठल मोटा और मजबूत बनना जरूरी है. तेज बढ़ते पौधों का पानी कम करे और ४ मिली प्रति १५ लिटर के औसत से लिहोसिन का छिड़काव करे.

संदर्भ

 किसान भाइयों, पपीता फसल के टाइमटेबल के लिए हमारे अन्य अवश्य पढ़िए. आपकी सलाह, शिकायत कमेन्ट में लिखे. लेख अन्य भाइयोंके साथ अवश्य शेअर करे.

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