Soil testing kit
how to grow soft okra

क्या आपकी भिन्डी मुलायम नही होती?

किसान भाइयो, रिसेटएग्री के इस विशेष लेख पर आपका स्वागत है. भिन्डी की उपज किसानों को मालामाल करने की क्षमता रखती है. अनेक किसान भाई अपने हर दिन के खर्चे चलाने के लिए, खेत के एक हिस्स में, भिन्डी, मिर्ची, बेंगन, करेला जैसी फसलों की उपज लेते है. हमने ऐसे अनेक किसानोको गाइड किया है. फिल्ड में घूमते हुए हमने अक्सर देखा है के कुछ किसानोकि भिन्डी एकदम मुलायम होती है. थोडीसी मोडो तो टूट जाती है. लेकिन कुछ किसानों की उपज कडक होती है. मोड़ने से मुडती है मगर टूटती नहीं. इस तरह की, रबड़ जैसी, भिन्डी को ना भाव मिलता है, ना ये मुनाफा देती है!

जब हमने ढेरों किसानों से बात की तो ध्यान में आया के जो किसान उर्वरक संतुलन पर ध्यान नही देते, किटनियंत्रण के लिए पुराने टाइप की दवाए इस्तेमाल करते है, उनकी भिन्डी रबड़ जैसी होती है. 

जो किसान

  • उर्वरक संतुलन करता है
  • रोगों का प्रतिकार करनेकी क्षमता वाले बिज चुनता है
  • खादों की मात्राए रुक रुक कर देता है
  • स्टिकी ट्रेप, फेरोमोंन ट्रैप, लाईट ट्रैप, ट्रायको कार्ड का उपयोग करता है
  • अझाडीरेक्टीन का छिडकाव करता है और
  • कम सक्रिय तत्वों वाला, केंद्रीय किटनाशक बोर्ड द्वारा नये से प्रमाणित दवाओंका छिडकाव करता है

उसकी भिन्डी मुलायम होती है. उसे मार्केट में रेट मिलता है और खर्चा कम होनेसे मुनाफ भी अच्छा मिलता है. 

क्या आपने भी इस बात का अनुभव किया है?   

आइए जानते है मुलायम भिन्डी के उत्पादन का तरीका.

बीजोंका चुनाव: भिन्डी के बिज चुनते समय उच्च उत्पादन क्षम, ४५ से ६० दिनों से फल देने वाली, यलो व्हेन मोजैक व्हायरस (YVMV) और ओकरा लीफ कर्ल व्हायरस (OLCV) को प्रतिरोध करने वाली, असानिसे टूटने वाली व्हरायती का चुनाव करे. आपके मार्केट में जो बेचीं जाती हो उसी उसी व्हरायटी को चुने.

सिंजेंटा की ओएच १५२, ओएच ५९७, ओएच २३२४, आयसी ए आर वाराणसी द्वारा प्रसारित काशी लालिमा, काशी चमन, काशी वरदान, शीतल ज्योती, ईशवेदा कि ओकरा १५१, १५२, कावेरी कि अर्का अनामिका, श्रीनिवासा कि रेड लेडी, एडव्हेंटा कि राधिका, ननहेम्स कि सम्राट, ननहेम्स कि शिखर, इटर्ना कि सहर्ष, तीएरा कि कुमारी यह कुछ जानेमाने नाम है, जिनका विचार किया जा सकता है. जो सीड्स ऑनलाइन उपलब्ध है उनके नामों में हायपर लिंक दिया है. लिंक पर क्लिक कर आप अधिक जानकारी ले सकते है, बीजों की एव् अन्य उत्पादनों की खरीद कर सकते है.  

उर्वरक व्यवस्थापन: फसल पोषण के लिए उर्वरक देना अनिवार्य है. अनेक किसान ओर्गेनिक मेंन्यूअर को ही संपूर्ण खाद समझते है तो कुछ लोग पूर्णत: रसायनों पर निर्भर करते है. यह दोनों ही तरीके पूर्णत:ग़लत है.

आज जो बिज हम इस्तेमाल कर रहे है, वो उच्च उपज देती है. यह वक्त की जरूरत भी है और वाणिज्य की भी. ईन बीजों से उपज के लिए मेन्युअर के साथ साथ रासायनिक खाद भी इस्तेमाल करने होंगे. 

ओर्गेंनिक मेन्युअर से फसल की जड़ों  का मिटटी से होने वाल जुड़ाव बढ़ता है. जड़े अच्छे से फैलती है, उर्वरकभी अच्छे से अवशोषित होते है. अगर ओर्गेंनिक मेन्युअर का इस्तेमाल नहीं किया तो भविष्य में जमीन बंजर होने की आशंका बनी रहेती है.

रासायनिक खाद देते समय बेसल डोस और आवर्ती डोस का फर्क करना भी जरूरी है.

बेसल डोस के माध्यम से मिटटी का सेंद्रिय कर्ब और उर्वरकता बढाई जाती है. इसमें एन पि के १२-३२-१६ के साथ साथ जिप्सम, इप्सम और  सल्फर का उपयोग करना होगा. मिटटी में बसे फोस्पेट के कारण फेरस सल्फेट, जिंक सल्फेट जैसे खाद बेअसर हो सकते है. इसीलिए ४ से ५ सूक्ष्म पोषक तत्वों तथा इडीटीए के  एकजीव मिश्रण का उपयोग करे. 

आवर्ती खादों से फसल की अवस्थाओंको संचालित किया जाता है. भिन्डी की फसल को  शुरुआती ३० दिनों तक जड़े बनाना, फैलाना, तना बनाना और शाखाए फैलाने का काम होता है.  तब तक आवर्ती खादों में एन पि के १९-१९-१९ का उपयोग होता है.  बादमे एन पि के १३-४०-१३/१२-६१-०० का इस्तेमाल करने से पौधों को फुल जड़ने में मदत मिलती है. इसके बाद ००-५२-३४, ००-६०-२० जैसे खाद देने से फलो की उपज, आकार बढ़ाने में मदत मिलती है. एस ओ पि और पोटेशिअम शोनाईट की मात्राए देने से उपज की शेल्फ लाइफ बढती है और फसल आवर्ती फुल और फल धारणा के लिए तैयार रहती है. 

किट और रोग व्यवस्थापन: विषाणु, जीवाणु, फफूंद, कीटक और मकड़ीया हमारे कृषि परिवेश के अविभाज्य भाग है. इनको पनपने के लिए उचित वातावरण की आवश्यकता होती है. कम वक्त मे खुदकी पैदावार बढाने के लिए ये सारे जीव सक्षम है. अगर फसल इनके कब्जे में गयी तो उपज फायदेमंद नही रहती, चाहे कितनी भी दवाए छिडक ले. 

विषाणुओं से फसल को बचाने के लिए दवा और दुवा काम नही आती. इसीलिए इनको प्रतिकार करने की क्षमतावाले बीजों का चयन करना ही सबसे अच्छा पैतरा है. 

जीवाणु और फफूंद के नियंत्रण हेतु मिटटी और हवा में बेकार की नमी नहीं  होनी चाहिए. फसल हवादार रहे और मिटटी में बाष्प रहेना जरूरी है. भिन्डीकी अधिकतम किस्मे जीवाणुजन्य तथा फफूंदजन्य रोगों को अच्छे से प्रतिकार करती है. अगर हवा में ज्यादा दिनों तक नमी बनी रहे और बादल मंडराते रहे तो पावडरी मिल्ड्यू  का फैलाव हो सकता है. ऐसी अवस्था में सल्फर डब्लू डी जी ८० प्रतिशत का छिटकाव फायदेमंद होता है. केन्द्रीय किट नियंत्रण बोर्ड ने भिन्डी के लिए अन्य किसी फफूंदनाशक का सुझाव नही दिया है. 

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बीज उपचार  

अधिकतर बीज उपचारित ही होते है लेकिन अगर आप बड़े स्तर पर भिन्डी का नर्सरी बना रहे है तो युपिएल के इलेक्ट्रोन का प्रयोग करे. इस बिज उपचार के दवा में तिन सक्रिय तत्व है जो फफूंद नाशक के साथ साथ किटनाशक भी है.  युपिएल का इलेक्ट्रोन तना मक्खी, रूट रॉट, ब्लाईट, दीमक और सफेद लट को रोखने में सफल है. 

नोबेल क्रॉप सायन्स का टेक्सन जिसमे थायोमेंथोक्झान ७० प्रतिशत है, बिज उपचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह महू (एफिड), फुदके (जस्सीड), तेला (थ्रिप) और सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाय) के नियंत्रण में मददगार है.

बिज उपचारण के बाद, किटनाशकों के छिडकाव के आलावा, कीटों के दमन हेतु हमारे पास कई अन्य तरीके उपलब्ध होते है. 

कीटों का दमन 

किटोंके दो प्रकार है. शाखाहारी और मासाहारी. शाखाहारी कीटक फसल में पैर जमा ले तो उपज में बड़ा नुकसान कर सकते है. तो मासाहारी किट इन नुकसान दाई शाखाहारी कीटोपर जीवन व्यापम करते हुए इनकी संख्या को नियंत्रित करते है. हमरी फसल रक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो एक और शाखाहारी कीटोंको नियंत्रित करे लेकिन मासाहारी किटोको उज्जेतित करे. बेहद जहरीले किट नाशक इस्तेमाल करने से शाखाहारी किट तो पूर्णत: नियंत्रित होती  नही, मासाहारी किट मारी जाती है.  तो हमे किटनियंत्रण का बेहद संवेदनशील और तकनीकीरूप से बेहद असरदार तरीका अजमाना होगा. शाखाहारी किटोंको नेस्तनाबूद करने से अच्छा होगा के हम इनकी संख्या, नुकसान दायक संख्याबल से निम्न स्तर पर बने रहने दे. इससे उपज भी बचेगी और मित्र किटक भी बचे रहेंगे. 

रोपाई के तुरंत बाद प्रति एकड़ १० स्टिकी पैड  लगवाने से हम महू, फुदके, तेला और सफेद मक्खी का निरिक्षण कर सकते है. स्टिकी पेड की संख्या १०० तक बढ़ाने से इन रस चुसक कीटोंकी संख्या बेहद कम रखने में मदत मिल सकती है. 

इनके आलावा भिन्डी में फल भेदक इल्लीयोंका प्रभाव हो सकता है. इनके निरिक्षण के लिए फेरोमोन पिंजड़े इस्तेमाल हो सकते है. भिन्डी के फसल में हेलिकोव्हर्पा, स्पोड़ोप्टेरा और फ्रुगीपर्डा के फेरोमोन पिंजड़े लगाए जा सकते है.  इल्लियों के नियंत्रण में ट्रायकोकार्ड का इस्तेमाल भी बेहद असरदार होता है. 

किटनाशकों का चुनाव करते हुए हम केन्द्रीय किटनाशक बोर्ड द्वारा प्रमाणित ऐसे किटनाशक चुने जिनमे सक्रिय तत्वों का प्रमाण कम होता है और फोर्म्युले में साल्वेंट के बजाए पानी का इस्तेमाल किया गया हो. किटनाशकों को सूचि छानने के बाद निम्न दवाए उपयोगी पाई गयी है. 

असरदार पीजीआर का इस्तेमाल 

भारतीय पीजीआर उत्पादनों मे नकली, मिलावटी और बनावटी उत्पादनों की भदमार है। जिस तरह हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होता, हर चमकीले शानदार पेकिंग मे पैक उत्पादन उमदा नहीं होता.  किसान भाइयों, केन्द्रीय बोर्ड ने भिंडी मे जिबरलीक एसिड और  होमोब्रासीनोलाइड का उपयोग करने को मान्यता दीयी है. 

जिबरलीक एसिड का इस्तेमाल तभी करना है जब फसल फसल की बढ़त ठीक से नहीं हो रही. पौधे बोने हो रहे है. ऐसेमे एच पी एम का २४ केरेट और सुमिटोंमो के  होशी का छिडकाव कर सकते है। 

होमोब्रासीनोलाइड का उपयोग फूलों की संख्या बढ़ाना और फूलों का रूपांतर फलों मे होने के लिए किया जाता है। गोदरेज कंपनी का डबल फूल खिलाने के लिए अवश्य करे.  

किसान भाइयों, आशा करता हु आपको यह जानकारी उपयोगी सिद्ध होगी. डायरी मे नोट करे या फ़ेसबुक पर #resetagri खोजे तो आपको हमारे लेख प्राप्त हो जाएंगे. 

कोई सवाल या शिकायत हो तो कमेन्ट मे लिखे. 

इस लेख को मित्र-परिजनों से शेअर करे, धन्यवाद!

  

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