
क्रेकिंग की पनौती, किसान को चुनौती! क्या है यह मामला? क्या है समस्या का हल?
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रिसेट एग्री के विशेष लेख में आपका स्वागत है. भारतीय किसानों के लिए बेहतर मुनाफा, खुशहाल जिन्दगी, यह हमारा नारा है. इसीलिए लेखो की रचना, कृषि की लागत कम करते हुए मुनाफा बढ़ाने के हिसाब से कियी जाती है. आपको हमारा यह प्रयास पसंद आएगा ऐसी आशा करते है. इस वेबसाइट के मेनू में जाकर आप हमारे अन्य ब्लॉग पढ़ सकते है!
एक और किसान की लागत बढ़ रही है और दूसरी और उपज मे क्रेकिंग की समस्या से मुनाफा आहत हो रहा है.
अंगूर, नींबू, संतरा, टमाटर, तरबूज, खरबूज, अनार, लीची, एपल, आम, अंजीर, ड्रेगन फ्रूट, ककड़ी जैसी फसलों मे क्रेकिंग की समस्याआम हो चुकी है. तेजी से बढ़ते डंठल और शाखाओ में भी क्रेकिंग दिखाई दे रही है. इस समस्पया से उपज का १०-१२ प्रतिशत हिस्सा बेकार हो रहा है, मुनाफा साफ हो रहा है!
क्रेकिंग कब होती है?
आम जलवायु अवस्था मे क्रेकिंग की समस्या आधा प्रतिशत तक होती है. लेकिन जब जलवायु मे अचानक परिवर्तन आता है, समस्या बढ़ जाती है. जब अचानक ठंड या नमी बढ़ती है तब क्रेकिंग की समस्या चरम पर पहुचकर, किसान को नुकसान के खायी मे धकेल देती है.
क्रेकिंग क्यों होती है?
उर्वरक संतुलन बेहद जरूरी होता है. फसल के लिए मुख्य पोषक तत्व, गौण पोषक तत्व, एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत एक विषष्ट अनुपात मे होती है. यह अनुपात पौधों के अलग अलग हिस्सों मे बदलता है. वृद्धि अवस्था अनुसार भी इस अनुपात मे परिवर्तन आता है. जब पौधे के एक विशिष्ट हिस्से मे केलशियम का अनुपात कम हो जाता है तब इसके कमी के लक्षण दिखाई देते है.
जब ठंड या नमी अचानक बढ़ती है तब फसल का ट्रांसपीरेशन (पत्तियों से पानी की भाप निकलने की प्रक्रिया) कम हो जाता है. जिससे जड़े पानी का वहन तेजी से नहीं कर पाती. पानी का वहन कम होने से केलशियम का वहन भी कम हो जाता है. इससे जहा भी कोशिकाए तेजी से विभाजित हो रही हो वहा, आंशिक रूप से होने वाली केलशियम की कमी, आंशिक ना रहेकर, बढ़ जाती है. परिणाम स्वरूप कोशिकाओ की भित्तिकाए कमजोर होकर टूटती है, जो हमे क्रेकिंग के माध्यम से नजर आती है!
केल्शियम के कमी के अन्य लक्षण क्या है?
पुराने पत्तियों के मुकाबले नए पत्तियों मे केल्शियम के कमी के लक्षण दिखाई देते है. पत्तिया मुड़ना, नए पत्ते का एक हिस्सा जलना, पौधे के तथा जड़ों के नोक जलना, पत्तिया छोटी रहेना, पौधे की बढ़वार रुखना यह लक्षण आम है.
इसके अलावा निम्न फसल निहाय समस्याए दिखाई देती है.
- सेब मे फल के सतह पर गड्ढे, छीटे पड़ना, फल कड़वा होना
- गोबी के पत्तियों के छोर जलना
- गाजर मे गड्ढे पड़ना
- केले की नई पत्ती का अटकना
- टमाटर और मिर्च के फलों के छोर गोलाई मे सड़ना
क्रेकिंग कैसे रोख सकते है?
क्योंकी केलशियम के वहन मे समस्या होने से क्रेकिंग होती है, केलशियम के वहन को बढ़ाकर, इस संसस्या को रोखा जा सकता है. इस लिए हमे फसल के जड़ों के पास पानी मे तुरंत घुलने वाला केलशियम देना होगा. केलशियम के वहन मे दो घटक महत्व पूर्ण है. एक है अमीनो स्वरूप का नाएट्रोजन और दूसरा है बोरान. यह दोनों घटक केलशियम को जड़ों से अंदर ले जाते है और कोशिकाओ तक के इसके वहन मे मददगार होते है. इसीलिए हमे जब भी अंदेशा हो के तापमान और नमी मे तेज बदलाव होने वाला है, हमे...
फसल के जड़ों मे प्रति एकड़ ५ किलो केलशियम नायट्रेट और १ किलो बोरान ट्वेंटी देना चाहिए.
इसके साथ साथ आप निम्न घटकों के घोल का छिड़काव भी कर सकते है.
- केलशियम नायट्रेट का ०.५ प्रतिशत (५ ग्राम प्रति लीटर)
- बोरान ट्वेंटी ०.२ प्रतिशत (२ ग्राम प्रति लीटर)
- यूरिया ०.२ प्रतिशत (२ ग्राम प्रति लीटर)
ध्यान रहे, पैसे बचाए!
लागत कम रखने हेतु आप रेडीमेड केलशियम नायट्रेट घोल और बोरान इथेनोलामाइन के इस्तेमाल से बचे. यह महंगे होने के साथ साथ इस पोषक तत्वों का अनुपात भी कम है!
केलशियम नायट्रेट ही क्यों? क्या केमिकल वाला केलशियम नायट्रेट इस्तेमाल कर सकते है?
केलशियम के विविध पदार्थोंमेसे केलशियम नायट्रेट और केलशियम क्लोराईड यह दो पदार्थ ही पानी मे घुलन शील होते है. जड़ों के पास क्लोराइड देने का कोई प्रयोजन नहीं है, इसीलिए केलशियम नायट्रेट दिया जाता है.
फर्टिलायझर ग्रेड केलशियम नायट्रेट और केमिकल ग्रेड केलशियम नायट्रेट मे अंतर होता है. फर्टिलायझर ग्रेड केलशियम नायट्रेट मे अमोनियम नायट्रेट मिला हुआ होता है, जो केलशियम के वहन मे मदत करता है. इसलिए केमिकल वाला केलशियम नायट्रेट इस्तेमाल करना हो तो उसमे थोडा यूरिया या अमोनिअम सल्फेट मिलाए. (अमोनियम नायट्रेट आम लोगो को नही मिलता).
बोरान ट्वेंटीही क्यों?
फसल को बोरान देने के लिए हमारे पास बोरेक्स, बोरिक एसिड, बोरान ट्वेंटी और बोरान इथेनॉलामाइन यह चार पर्यात है. इसमे से बोरेक्स पानी मे घुलता नहीं है. बोरिक एसिड, कम घुलता है, शिवाय उसका सामू एसीडीक है. बोरान इथेनॉलामाइन छिड़काव से देने के लिए बनाया गया है, बेहद महँगा भी है. बोरान ट्वेंटी पानी मे तुरंत घुलता है, इसीलिए यह एक मात्र और उमदा पर्याय है.
क्रेकिंग होगा ही नहीं!
ठंड पड़ते ही, क्रेकिंग की समस्या आने के पहले, आप बिना इंतेजार किए, फसलों को, प्रति एकड़ के हिसाब से केलशियम नायट्रेट ५ किलो के साथ, डाय सोडियम टेट्रा बोरेट, याने बोरान २० प्रतिशत, १ किलो, २०० लीटर पानी मे घोल बनाकर, जड़ों मे दे! साथ साथ आप केलशियम नायट्रेट का ०.५ प्रतिशत (५ ग्राम प्रति लीटर), बोरान ट्वेंटी ०.२ प्रतिशत (२ ग्राम प्रति लीटर) और यूरिया ०.२ प्रतिशत (२ ग्राम प्रति लीटर) के घोल का छिड़काव भी कर सकते है.
क्रेकिंग होने पर,क्या ऐतियातन उपाय करना चाहिए?
अगर क्रेकिंग कि समस्या दिखाई दे रही है तो,पहेले फसलों को, प्रति एकड़ के हिसाब से केलशियम नायट्रेट ५ किलो के साथ, डाय सोडियम टेट्रा बोरेट, याने बोरान २० प्रतिशत, १ किलो, २०० लीटर पानी मे घोल बनाकर, जड़ों मे दे! साथ साथ आप केलशियम नायट्रेट का ०.५ प्रतिशत (५ ग्राम प्रति लीटर), बोरान ट्वेंटी ०.२ प्रतिशत (२ ग्राम प्रति लीटर) और यूरिया ०.२ प्रतिशत (२ ग्राम प्रति लीटर) के घोल का छिड़काव भी कर सकते है.
क्योकि क्रेकिंग से पौधों के डंठल और शाखाओ में पड़े क्रेक से फफूंद प्रवेश कर सकती है, ऐतियातन किसी अच्छे सिस्टीमिक फफूंदीनाशक का छिड़काव भी करे! इसमें अदामा का कस्टोडिया, पि आय का विस्मा, यूपीएल का साफ़ इनका समावेश होता है.