white grub is potential threat for sugarcane, soybean, maize, onion, potato and groundnut. Here we provide method to control this pest.  Indian farmers can benefit a lot from resetagri website.

सोयबीनमें सफेद लट (हुमनी) कब करेगी नुकसान? कैसे करे सामना?

सफेदलट को हमेशासे ही गन्नेसे जोड़कर देखा गया है. गन्ने में ये बहोत नुकसान करती है. शुगरमिल अक्सर अभियानोंके माध्यम से इस प्रकोप का प्रबंधन सामजिक पद्धतियोंसे करती है. आपने इसका अनुभव लिया ही होगा. 

बिते दशकसे यह कीट अन्य फसलोमेंभी असर कर रही है. सोयबीन, मकई, मुंगफली, आलू, प्याज जैसी फसलोमे होनेवाले नुकसान के समाचार चल रहे है. 

सफेद लट की मादाए अक्सर फसलोंको बिना देखेही जमीनमें अंडे देती है. तो बात यह है के इसका प्रकोप हर फसल में हो सकता है. अनेकोंबार ऐसाभी होता है के जमीन में सफेद लट होने के बाबजूद उसका असर फसल पे दिखाई नही देता. बहुतायत के वक्त जब,  जब पानी की कोई कमी नही होती, सफेद लट मिटटी के निचले हिस्से में जाकर, फसल की जड़े खाती है. यह जड का दूर का हिस्सा होता है. इसका फसल पर उतना असर नही होता जो उपरी हिस्से में दिखाई दे या फसल की नीव ढीली हो सके.

White grub cause more impact in drought situations.  When monsoon is ample, it goes in deep layers of soil and eat far away roots. Where as in drought situation, it moves towards surface and eats roots closure to plants which leads to wilting.

 

जब पानी कम होता है, जमीन में नमी की कमी होती है, सफेद लट मिटटी के उपर के हिस्से में आकर, फसल की जड़े खाती है. इससे फसल को पानी के कमी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उसकी उपरी जड़े टूट जाती है. फसल पिली पड़ने लगती है.  पानी देनेपर भी कोई फायदा नही होता क्योंकी फसल की जड़े टूट चुकी होती है. खीचने से वो आसानी से हाथ में आ जाती है. 

पानी की कमीसे झुजते किसानोंको सफेद लट से भी झुजना पड़ता है. 

अगर आपके सोयबीन के फसल में, पानी और यूरिया देने के बाद भी पिलापन दिखाई दे रहा है तो कुछ पौधे उखाड़ कर उसकी मिटटी चेक करे. सफेद लट दिखाई दे तो आपको तुरंत ही इसपर इलाज करना होगा. 

कात्यायानी  का नाशक किटनाशक जिसमे फिप्रोनील ४०% और इमिडाक्लोप्रीड ४० % यह दो सक्रिय घटक है,  बढिया असर दिखता है. इसका प्रति एकड़ का डोस २०० ग्राम है जो ५०० लिटर पानी में घोलकर ड्रिप या बहेते पानी में टपकाकर दे सकते है. इसका असर तुरंत ही दिखाई देता है. फसल को बचाने के लिए यह सबसे बेहतर विकल्प है. 

उपर दिया गया उपाय आपातकालीन होनेसे खर्चा अधिक होगा. एक एकर का खर्चा १८०० से २६०० रूपये के आस पास हो सकता है. 

White grub can be controlled using various microbial products based on beauveria bassiana, metarhizium anisopliae or paenibacillus popilliae

इस आपातकालसे बचने का एक उपाय है. यह उपाय जैविक भी है और सस्ता भी है. 

हुमणासुर यह एक जैविक किटनाशक है. इसमें मेटारायझीअम, पेसीलोमायसेस, बव्हेरिया जैसी फाफुन्दोका समावेश है. यह किटभक्षक फफूंद सफेद लट को मस्कार्दीन जैसी बिमारिय देती है. यह संक्रमक बीमारी होने से सफेद लट के अलावा मिटटी में मोजूद दीमक, निमेटोड, अन्य कीटोंके अंडे और शंखी बीमार होकर मारे जाते है.  फफूंदनाशी दवाके आलावा सभी रासायनिक दवाओंके साथ इसका इस्तेमाल हो सकता है. प्रति एकड़ का डोस 3 किलो है जो सड़ी हुई गोबर खाद के साथ मिलाकर दे सकते है. ड्रिप से भी छोड़ सकते है.  इसका एक एकड़ का खर्चा मात्र 750 रूपये है.  

सफेदलट का जीवनचक्र

सफेदलट के जीवनचक्र को समझनेसे आप इसका नियंत्रण आसानीसे कर सकते है.

Life cycle of white grub. Indian farmers must understand this life cycle for easy and complete solution of white grub problem. Resetagri is website for Indian farmers.

अप्रैल-मई में सफेद लट के भुंगे शंखी या प्यूपा से बाहर निकलकर उड़ने लगते है. इनके द्वारा एक फेरोमोंन छोड़ा जाता है जो इनके प्रजाति में जमाव का सिग्नल होता है. इस सिग्नल को पाकर वह आस पास के निम् या आम जैसे पेड़ पर डेरा जमाते है. यहा वह पेड़ की पत्तिया खाते है और मिलन करते है. इसके बाद वे आस पास के खेतोंमें अंडे देते है. कुछ ही दिनों में अंडोसे लार्वा बाहर निकलते है. यह लार्वा मिटटी में घुसकर पौधोंके जड़ो को खाते है. अगर मिटटी में नमी है तो वे जमीन के निचले लेअर में घुसकर पौधों की जड खाते है. इस दौरान वो चार बार केछुई छोडकर बड़ा आकर प्राप्त करते  है. मार्च के बाद यह शंखी बनाकर उसमे सो जाते है. अप्रैल-मई में फिरसे इसी जद्दोजहद में जुट जाते है. 

इसके इस जीवनचक्र से पता चलता है के...

  • जब भृंग पेड़ोपर जमा होते है तब लाईट ट्रैप के मदत से इनको आकर्षित करे. लाईट के निचे जेहर मिश्रित पानी में  डूबकर यह मारे जाते है.
  • एमेझोंन पर बकेट ट्रैप और ल्युअर मिलता है. इसके इस्तेमाल से भी भृंग को मार सकते है.
  • मिटटी में जो लार्वा उपर के लेअर में बसते है उन्हें कत्यायानी के नाशक से  मार सकते है. फसल में लक्षण दिखाई देनेपर इसका उपयोग करना उचित है. 
  • मिटटी में हूमनासूर जैसे कीटकभक्षी फफूंद के इस्तेमाल से रोगोंका संक्रमण करके उपर के और निचले लेअर में छिपे लार्वा और लट को मारा जा सकता है. 

आपने कोनसे विकल्पों का उपयोग किया है? और आपका अनुभव कैसा रहा, यह बाते आप कमेन्ट में लिख सकते है. धन्यवाद!

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