
क्या सरकार अर्बन फार्मर्स के लिए कानून बनाएगी?
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रिसेट एग्री के विशेष लेख में आपका स्वागत है. भारतीय किसानों के लिए बेहतर मुनाफा, खुशहाल जिन्दगी, यह हमारा नारा है. इसीलिए लेखो की रचना, कृषि की लागत कम करते हुए मुनाफा बढ़ाने के हिसाब से कियी जाती है. आपको हमारा यह प्रयास पसंद आएगा ऐसी आशा करते है. इस वेबसाइट के मेनू में जाकर आप हमारे अन्य ब्लॉग पढ़ सकते है!
दिल्ली शहर के ६० प्रतिशत मास की जरूरत, २५ प्रतिशत दूध और १५ प्रतिशत सब्जियों की जरूरत, अर्बन फार्मर्स ही पूरी करते है. हायड्रोपोनिक्स, व्हर्टिकल फ़ार्मिंग, शेडनेट, मशरूम फ़ार्मिंग, पॉल्ट्री फ़ार्मिंग, एक्वा पोनिक्स के माध्यम से अनेक युवा, रोजगार के साथ साथ शहरी नागरिकों को सेहतमंद सलाद, सब्जिया, फूल, फल, दूध, डेयरी उत्पाद, अंडे और मास उपलब्ध करा रहे है.

लेकिन सरकारों ने आजतक, इन शहरी किसानों को कोई तबजों नहीं दीया है. अब वक्त आ गया है, इस और ठीक से ध्यान दिया जाए. इनके लिए नियम, कानून बनाए जाए और सुविधाए दीयी जाए. घरो के पीछे, खाली जगहों, इमारतों के छत और छज्जों मे काम करने वाले इन घरेलू किसानोंको, नियमों के आधारपर खाली जगह और खुले प्लॉट उपलब्ध कराए जाए.
तेजी से फैलते शहर, जनसंख्या विस्फोट, जलवायु परिवर्तन से लोगों को पोषक खाने की कमी का सामना करना पड़ता है. शहरी इलाकों मे ५० प्रतिशत औरते और बच्चे खून की कमी से बीमार होते है. मोटापा बढ़ रहा है. दुनियाभर की कृषि संस्थाओने, शहर और शहर परिवेश मे होनेवाले कृषि का महत्व माना और विशद किया है. वे मानते है के इससे लोगों की पोषण की जरूरते पूरी होगी, रोजगार बढ़ेगा और गरीबी हटेगी!
महाराष्ट्र के पुणे शहरमे, म्यूनसीपल कॉर्पोरेशनने, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यमसे, लोगों की शहरी कृषि मे रुचि बढ़ाई है. इसके लिए जगह देने की पहल करके इन्होंने एक आदर्श निर्माण किया. स्कूल, सरकारी और निजी संस्थाओ मे भी इन प्रकल्पोंको को बढ़ावा देना होगा. इन प्रकल्पों के लिए पर्यावरण पूरक खाद, दवाए, सिचाई, कंपोष्ट और बायोगेस प्लांट पर सब्सिडी उपलब्ध कराने से बढ़ावा मिलेगा. तमिलनाडु और आंध्रा मे भी इस तरह के उपक्रमों को चेतनया दीयी जा रही है.
कई जगह, सरकारों ने इस विषय मे काम किया है लेकिन प्रभावी नियमों और अमल के अभाव मे, ऐसे प्रयास अपना महत्व खो देते है. लोग इन्हे भूल जाते है, या अधूरा छोड़ देते है.
आनेवाले दशकों मे भारत भर सेकड़ों स्मार्ट सिटी बनाने का सपना सरकार देख रही है. नदियों के सफाई पर हजारों करोड़ बहाए जा रहे है. इन प्रकल्पों को कार्यरत करते समय "शहरी कृषि कानून" तैयार करने से, एक प्रतिबद्धता निर्माण होगी. शहरों मे बदलाव तेजी से होते है. यहा प्रदूषण, पानी की समस्याए भी उग्र होती है. यह एक बड़ी बाधा हो सकती है. ऐसा ना हो इसीलिए, विशेष सुविधाओ के साथ साथ, मिट्टी विरहित कृषि जैसे तंत्रों को बढ़ावा देना होगा.
शहरों की कृषि, पारंपरिक कृषि का ना कोई विकल्प है ना इसकी उपज पारंपरिक कृषि का कोई मुकाबला कर सकती है. लेकिन अन्न सुरक्षा मे यहआघात अवशोषक (शॉक एबसॉरबर) का काम अवश्य कर सकती है!
संदर्भ: डाउन टू अर्थ