क्या पौधों को सिलिकॉन की जरूरत होती है?

क्या पौधों को सिलिकॉन की जरूरत होती है?

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मिटटी में सिलिकॉन 28.2 प्रतिशत होता है. ये बहोत ज्यादा है! आजतक आपने, पौधों पर नायट्रोजन, फोस्परस, पोटाश, सल्फर, और झिंक जैसे पोषक तत्वों की कमी को, देखा होगा. लेकिन क्या. सिलिकॉन के कमी के लक्षन देखे है?

कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, लिपिड इन जैविक पदार्थों मे तथा पौधे के द्रवों मे सिलिकॉन नहीं होता. इसीलिए सिलिकॉन का एक पोषक तत्व के स्वरूप मे विचार ही नहीं होता था. क्योंकी मिटटी में ऑक्सीजन के बाद, सर्वाधिक प्रमाण सिलिकॉन का होता है; उर्वरक के रूप में इसके प्रयोग का भी कभी  विचार ही नहीं हुआ. पौधे के शुष्क वजन मे सिलिका १० प्रतिशत तक  फायटोलिथ (पत्थर) के स्वरूप मे होता है. तो पौधे मिटटी से इसका अवशोषण तो करते ही है!

गन्ना और धान जैसी,  सिलिकॉन का भरपूर संकलन करने वाली फसले, बड़े पैमाने पर, बार बार लेने से और अन्य उर्वरकों के उपयोग से उपज भी कई गुना बढ़ाने से, धीरे धीरे, मिटटी में झटपट उपलब्ध होने वाले सिलिकॉन की मात्रा, तेजी से कम होने लगी. फसले बीमार होने और उपज कम होने का सिलिसिला शुरू हुआ. कारणों का पता करने के लिए, बंगलौर के कृषि विद्यापीठ में दशकभर चले संशोधन के बाद, सिलिकॉन उर्वरको का महत्व उजागर हुआ. जिसके आधार पर वर्ष २०१७-१८ दरम्यान,  सिलिकॉन  का समावेश एक उर्वरक के स्वरूप में फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर में किया गया. 

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जिस मिटटी में धान और गन्ने जैसी फसलों  की तथा व्यापारी फसलों की उपज नही लियी गयी है, सिलिकॉन की कमी होने का कोई खास कारण दिखाई नही देता.  

आजभी यह किस तरह काम करता है? इसकी हमे पूरी समझ नही है. क्या यह पौधे के प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित करता है? क्या यह वनस्पति कोशिकाओं के बाहर जमा होता है? इन बातों का पता नही है. लेकिन इसके प्रयोग से अजैविक तनाव, सूखा, भारी धातु विषाक्तता और क्षारीयता का सामना करने की पौधे की क्षमता बढती है. फसलों के उपज में भी बढवार पायी जाती है. पौधो द्वारा फफूंद जनित रोग तथा बीमारियों का बेहतर सामना करने का भी पता चला है. 

सिलिकॉन के उर्वरकों में ऑर्थोसिलीकिक एसिड का सबसे अधिक विचार हो रहा है. पौधे इसी स्वरूप मे सिलिका का अवशोषण करते है. ऑर्थोसिलीकिक एसिड का पत्तियों पर छिड़काव करने से स्पष्ट फायदे नजर आते है. इसका उपयोग करने से दवाओं का खर्चा कम करने में भी मदत मिलती है. 

यु पि एल का जेनेक्सा, जो एक पेटंटेड उत्पादन है. धान, गन्ना, मिर्ची, कपास और सब्जियों में शानदार परिणाम दिखाता है. 

यु पि एल  जेनेक्सा का छिडकाव ५०० मिली प्रति एकड़ के औसत से दो बारा करना है. पहला प्रयोग फसल में फुल लगते समय और दूसरा प्रयोग फल लगते समय करे. गन्ने में इसका प्रयोग १२०० मिली प्रति एकड़ के औसत से करना चाहिए. यु पि एल का जेनेक्सा २५०, ५०० मिली और १ लिटर के पेकिंग में उपलब्ध है. 

इसके प्रयोग से फसले अन्य पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में उठाती है. कीटो के रोकथाम के आलावा फसल की प्रतिरक्षा प्रणाली तेज होती है. उपज की गुणवत्ता और मात्रा में सुधर होता है. चावल के दाने में भारी धातु की मात्रा कम होती है. मिल में टुकड़ा भी कम होता है. कपास के धागे लंबे और मजबूत बनते है. 

यह उत्पादन ऑनलाइन उपलब्ध है. यहा क्लिक कर खरीदने से आपको छुट के आलावा कॅश बैक, पार्टनर ऑफर, बैंक ऑफर, फ्री होम डिलीवरी, केश ओन डिलीवरी जैसी सुविधाए प्राप्त होगी. 

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