मिटटी और फसल का रिश्ता हो मजबूत, तो पैदावार होगी भरपूर!

मिटटी और फसल का रिश्ता हो मजबूत, तो पैदावार होगी भरपूर!

किसान के रूप में हम अक्सर उच्च पैदावार प्राप्त करने का सपना देखते हैं। उच्च पैदावार का अर्थ है, अधिक लाभ कमाने की अधिक संभावना। इसके लिए हम अपनी फसलों पर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। यह सुनिश्चित करते है कि फसल हरीभरी बने रहे। उसकी बहुत वृद्धि हो ढेर सारे फूल और फल लगे पत्तियाँ बेदाग बनी रहे। फसलों में कीड़ों का प्रकोप ना हो। भूमि के उपर दिखाई देने वाले फसल के भाग अच्छे बने रहे यह सुनिश्चित करने के लिए किसान अक्सर खूब सारी मेहनत और ढेर सारा खर्चा करते हैं। भरपूर पैदावार होती है, लेकिन हात में मुनाफा नही आता!

हालाँकि, इस ब्लॉग में हम देखेंगे कि हमें नजर से ओझल रहेने वाले बुनियादी हिस्सोंपर अधिक ध्यान देना होगा। फसल की जड़ें हमेशा नजर से ओझल रहती हैं। हम शायद ही कभी जड़ों के मजबूत होने पर ध्यान देते हैं। फसल और मिटटी का रिश्ता, जडोंके बिना नही बन सकता, यह बात हम अक्सर भूल जाते है यही सबसे बड़ी गलती है, जो हम बार-बार करते हैं। 

हम अपने दांतों को ब्रश करने के अलावा, अपने दांतों को स्वस्थ रखने के लिए, मसूड़ों की भी  मालिश करते हैं। एक उज्जवल भविष्य के लिए, हम अच्छे दोस्तों और परिवार के साथ संबंध मजबूत बनाये रखते हैं। इसी तरह अधिक उपज प्राप्त करने के लिए आपको यह देखना होगा कि, फसल की जड़ों का, मिट्टी से गहरा संबंध बने। 

१५०० से अधिक खरीददारोंने इस ब्रश को पांचमें से चार से अधिक स्टार दिये है!

जब बीज अंकुरित होते हैं, तो वे पहले जड़ें बनाते हैं। जैसे ही जड़ें मिट्टी में जमने लगती हैं, पत्तों के अंकुर निकलने लगते हैं। यह एक संकेत है कि जड़ अधिक महत्वपूर्ण है।

जड़ों को मिट्टी में अच्छी तरह फैलना चाहिए। इसे सभी दिशाओं में समान रूप से फैलना चाहिए। उसे जरूरत का पानी और पोषक तत्व आसानी से मिलते रहे। इसका मिट्टी से घनिष्ठ संबंध बनना एक आवश्यकता है। 

मिट्टी से घनिष्ठ संबंध बनना एक आवश्यकता है!

इसलिए बुवाई से पहले मिट्टी की तैयारी की जाती है। मिटटी भुरभूरी और हवादार रहे। क्या आप जानते है, जडो के और मिटटी के बीच जो संपर्क होता है वहा एक तीसरा हिस्सेदार भी होता है? यह हिस्सेदार अगर नेक हो तो जोड़ मजबूत बनेगा और चोर हो तो जोड़ ढीला होगा! यह तीसरा हिस्सेदार होते है, सूक्ष्मजिव. 

फसल सूक्ष्मजीवों को आकर्षित करने के लिए जडोके के माध्यम से शर्करा युक्त स्राव छोडती है।  ऐसे आकर्षित मित्र सूक्ष्मजीव, जड़ों की सतह पर कोलनीया (बस्तिया) बनाते हैं।

आजकल समस्या यह है कि मिट्टी बेजान हो गई है। इसमें शायद ही कभी पर्याप्त मित्र सूक्ष्मजीव होते हैं। इन सूक्ष्मजीवों की विविधता भी कम हो चुकी है। इससे जड़ों के लिए मिट्टी के साथ बंधन बनाना मुश्किल हो जाता है। मित्र सूक्ष्मजीवों की अपर्याप्त उपस्थिति के कारण, फसल की जड़ें गहरी और चौड़ी नहीं हो सकती हैं। मित्र सूक्ष्मजीवों के आभावमें मिटटी में जड गलन और सडन करने वाले शत्रु सूक्ष्म जिवोंकी संख्या बढने की संभावना भी बढ़ जाती है।

हम जड़ों और मिट्टी के बीच के बंधन को कैसे सुधार सकते हैं? मित्र सूक्ष्मजीवों की कमी की भरपाई कैसे करें? 

माइक्रोबायोलॉजी का विज्ञान यहां आपकी मदद कर सकता है। हमें मिट्टी में मित्र सूक्ष्मजीवों की संख्या और विविधता को बढाना होगा। जैसे ही हम, जैविक खादों की माध्यम से मित्र सूक्ष्मजीवों को मिट्टी में छोड़ते हैं, बढ़ती जड़ें इन मित्र सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देना शुरू कर देती हैं। बढ़ती फसलों की जड़ों से निकलने वाले शर्करा स्राव इन मित्र सूक्ष्मजीवों के लिए भोजन हैं। जैसे ही मित्र सूक्ष्मजीव फैलते हैं, वे पोषक तत्वों को फसल की जड़ों तक ले जाते हैं। यह मित्र जिव मिटटी में बसे शत्रु जीवोंके साथ सतह और अन्नद्रव्योंके लिए प्रतियोगिता करते है। ट्रायकोडर्मा जैसे फफूंद तो जड गलन और जड सडन करनेवाले फफुन्दो को मारकर उनकों निचोड़ भी लेती है।  यदि यह विनिमय संबंध समृद्ध होता है, तो जड़ों का मिट्टी का बंधन मजबूत होता है। 

 

खेत की मिट्टी उतनी प्राकृतिक नहीं है जितनी आप सोचते हैं। मनुष्य ने उसके गुणों में हेरफेर किया है। इसलिए मिट्टी कमजोर हो गई है। सबसे बड़ी समस्या है, कार्बनि घटकों की। जब मिटटी में फसले नही होती तब जड़ोपर जमने वाले मित्र सूक्ष्म जिवों को मिटटी में बसे कार्बनि घटकों का सहारा लेना पड़ता है। इन कार्बनि घटकोंके सहारे उनकी संख्या बढती नही, लेकिन उनका अस्तित्व बना रहेता है। दुबारा फसल उगने पर, यह भी फिरसे पनपने लगते है और फसल से गठजोड़ बनाने का और बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवोंसे प्रतियोगिता करने का सिलसिला फिरसे शुरू हो जता है।

दुनिया के अलग अलग हिस्सों में मिट्टीके कार्बन का जो सर्व्हे किया गया वह दिखाता है  के अधिकतर मिटटी में कार्बन का अंश ०.१ प्रतिशत के आसपास पहुच गया है. यह प्रतिशत करीबन १ प्रतिशत होना चाहिए. 

आप इस स्थिति को अचानक और पूरी तरह से नहीं बदल सकते। इस प्रक्रिया को धीरे-धीरे और चरणों में करने की आवश्यकता है। हर मौसम में आपको मिट्टी में जैविक अंश बढ़ाना चाहिए।  ऐसा करते समय आपको समय-समय पर मिट्टी में नए सूक्ष्मजीवों को जोड़ना होगा। 

यहां हम माइकोराइजा की सलाह दे रहे हैं। माइकोराइजा एक सहजीवी फंगस है। यह ब्रेड पर उगने वाले फंगस से अलग होता है। यह धागोंके जाली जैसे बढ़ते है। यह जड़ों के साथ-साथ मिट्टी में भी विकसित होते है। ऐसा करने पर यह जड़ों को नुकसान नहीं पहुंचाता है। एक बार जब जड़ें माइकोराइजा से संक्रमित हो जाती हैं, तब माइकोराइजा और जड़े भी साथ साथ फैलती है। ये बढ़ते धागे नई जड़ों को संक्रमित करते रहते हैं। जैसे-जैसे वे क्षैतिज रूप से बढ़ते हैं, वे मिट्टी में भी गहराई तक भी बढ़ते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से वे रूट ज़ोन के आकार को लगभग 50 गुना बढ़ा देते हैं। ये पानी और खनिजों को गहराईयोंसे जड़ों तक ले आते हैं। 

इसका मतलब है कि फसलों को अधिक पोषक तत्व मिलते हैं। इसका मतलब यह भी है कि किसान अब कम उर्वरकों से काम चला सकते है। जैसा कि लेख की शुरुआत में लिखा गया है, मिटटी और फसल का रिश्ता हो मजबूत, तो फसल भी खुभ लहेलहाएंगी और पैदावार भी भरपूर बढ़ेगी। 

मिटटी और फसल का रिश्ता हो मजबूत, तो फसल भी खुभ लहेलहाएंगी और पैदावार भी भरपूर बढ़ेगी।

यहां हम प्रतिष्ठित कंपनियों के माइकोराइजा पर आधारित उत्पादों का प्रदर्शन कर रहे हैं। उनमें से ज्यादातर रियायती दरों पर उपलब्ध हैं। अगर ऑनलाइन खरीदा जाता है, तो यह उत्पादन 3 से 4 दिनों में भारत के हर कोने में पहुंचा दिया जाते है। 

इस प्रोडक्ट को करीबन ७० लोगोंने ४+ रेटिंग दियी है. व्हेमोज, मयकोरायझा के तंतु और संक्रमित जड़ के टुकड़ों से बना है यह पौधों की वृद्धि और स्थिरता के लिए उपयोगी है। यह पौधों द्वारा पोषक तत्वों और पानी के अवशोषण में सुधार करता है। जड़ बायोमास में वृद्धि और विपुल शाखाओं के रूप में लाभ दिखाई देते हैं। यह फास्फोरस और अन्य मैक्रो और सूक्ष्म पोषक तत्वों के अवशोषण में सुधार करता है।

व्हेमोज को पानी में मिलाकर टपक सिंचाई के माध्यम से या पौधों के जड़ क्षेत्र के पास द्रेंचिंगसे  दिया जा सकता है।

75-100 ग्राम/एकड़ के औसत से इस्तेमाल की सिफारिश कियी गयी है।

उत्पाद साहित्य से पता चलता है कि उत्पाद ने केला, पपीता, आम, चिक्कू, अनार, अमरूद, बेर, सेब, नाशपाती, आड़ू, बेर, लोकेट, बादाम, चेरी, अंगूर, अंजीर, तरबूज, खरबूज जैसी कई फसलों में लाभ दिखाया है। 

हमें उम्मीद है कि आपको यह लेख पढ़कर अच्छा लगा होगा। कृपया टिप्पणियों में लिखें। अपने दोस्तों के साथ इस लेख को शेयर करें। इस ज्ञान को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने में हमारी मदद करें। शुक्रिया।

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