
क्या आपको मृदा परीक्षण करना चाहिए?
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जलवायु परिवर्तन और उसके बुरे प्रभावों को आज हम अनुभव कर रहे है। हालांकि, 10 साल पहले किसी को विश्वास नहीं हुआ था, कि ऐसा हो रहा है। सच्चाई यह है कि "अब हमें देर हो चुकी है"। हमें इस स्थिति को उलटने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है।
"मृदा स्वास्थ्य" के मामले में भी वही अनिच्छा का सामना करना पड़ रहा है। जैसे ही हमने अधिक उपज देने वाली किस्मों का उपयोग करना शुरू किया, हमने मिट्टी का गलत प्रबंधन किया। इन वर्षों के दौरान मिट्टी के "जैविक तथा अजैविक" गुणोंकी हानि हुई। शोधकर्ता मानते है कि अधिकांश मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन का स्तर 0.1 प्रतिशत से नीचे पहुच गया है। हर फसल में हम मिटटी में अनेक पोषक तत्व मिलाते है और फसल के रूप में इन पोषक तत्वोंको निकाल भी लेते है। इस दरम्यान मिटटी में मिलाए गये पोषक तत्व और निकाले गये पोषक तत्वोंका कोई हिसाब नहीं होता। जिसके कारण मिटटी में पोषक तत्वोका असंतुलन हो जाता है। यदि इन बातोंपर ध्यान नही दिया गया तो, यह मिट्टी शीघ्र ही अनुपजाऊ और बंजर हो जाएगी।
(किसान इस ब्लॉग का गूगल ट्रांसलेशन का उपयोग करके क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादीत कर सकते हैं।)
इस परिदृश्य में, किसानोंको मिट्टी में जैविक कार्बन तथा अन्य पोषक तत्वोंके अनुपात में सुधार के लिए एक व्यवस्थित योजना बनानेकी जरूरत है। ऐसी योजनाओं में विभिन्न तरीके शामिल हैं। जैसे..
- खाद का संशोधन।
- कवर फसलों या हरी खाद फसलों की खेती।
- फसल चक्र अपनाना।
- वार्षिक हरे घास की खेती।
- कम जुताई
- कृषि वानिकी
कुछ किसान मानते है के गोबर खादके इस्तेमाल से मिट्टीमें तुरंत सुधार हो सकता है, लेकिन यह सही नही है।
- एक साथ बहोत सारा गोबर खाद मिलाना महंगा है।
- ऐसा नियमित रूप से करना करीबन अशक्य है।
- ऐसा करने से कार्बन का संतुलन तो होगा लेकिन अन्य पोषक तत्वोंका नहीं।
हमे मृदा में सुधार करने के लिए कंपाउंडिंग का सहारा लेना होगा। हमने हर फसल के साथ जैविक कार्बन की छोटी छोटी किस्तोंमें हानी कियी है। इसीलिए अब हमे हर फसल के साथ किश्तोंमें ही इसमें सुधार करना होगा। यह व्यवहारिक भी होगा।
फसल सूरज से जितनी ऊर्जा प्राप्त करती है, उसके ३०% उर्जा जडोंकी स्त्राव की माध्यम से मिटटी में छोडती है. यह स्त्राव मृदा में जैविक कर्ब को बढाती है. अगर हम फसल को अच्छे तरीकेसे उगाते है, तो हर फसल के साथ मिटटी में जैविक कर्ब की मात्रा बढ़ेगी। अगर हमे फसल को अच्छेसे बढ़ाना हो, तो हमे नियमित रूप से मृदा परिक्षण करना होगा।
अनेक किसान भाई कहेते है, के मृदा परिक्षण की क्या जरूरत है? हम फसल को लगने वाले पोषक तत्व खाद के माध्यम से दे रहे है। अगर फसल कोई कमी के लक्षण दिखाती है तो हम उस कमी को पूरा कर सकते है। लेकिन यह बात उतनी उचित नहीं है, क्योंकि…
फसलमें पोषक तत्व की कमी, देर से दिखाई देती है। जब लक्षण दिखाई देते है तब तक फसल पर तथा उसके उत्पादकता पर काफी बुरा असर हो चूका होता है। पोषक तत्व देनेसे उसकी भरपाई नही हो सकती।
फसल में दिखाई देने वाले तत्वोंके कमी के लक्षण बहोत ही अस्पष्ट होते है। इन लक्षणोंसे सटीक अनुमान लगाना असंभव होता है। कई लक्षण तो जैविक रोगों के लक्षणोंसेभी मेल खाते है।
ऐसेमें मृदा परिक्षण को कोईभी पर्याय नहीं है। इस परीक्षणोंके दरम्यान जो तरीके इस्तेमाल होते है उनसे मृदा में उपलब्ध तत्वोके उस हिस्से की जाच होती है। जो फसल की जड़ोंको उपलब्ध हो सकते है। इस विश्लेषणसे प्राप्त जानकारी के आधार पर मृदा के पोषक तत्वोंका संतुलन साधना उचित होता है।
किसान भाइयो आप हर एक या दो साल के अंतराल से मृदा परिक्षण अवश्य करे और उसके आधार अनुसार मृदा सुधार अवश्य करे।
हमारे किसान स्टोअर पर साइल टेस्टिंग किट उपलब्ध है। इस टेस्ट को खरीद ने पर आपको एक सेम्पल कलेक्शन किट भेजा जाएगा। इसकी मदत से आप मिटटी के नमूने तैयार करे। किट के साथ ही आपको एक प्रीपेड़ पोस्टेज का लिफाफा दिया जाता है। उससे यह नमूने भेजे। आप को इसका नतीजा पोष्ट ऑफिस द्वारा भेज दिया जाता है। इसमें सोलह टेस्ट शामिल है
1) पिएच 2) इसी 3) जैविक कार्बन 4) नत्र (N) (उपलब्ध नत्र) 5) फोस्फरस (P) 6) पोटेशियम (K) 7) सल्फर (S) 8) झिंक (Zn) 9) आयरन (Fe) 10) मेंग्निज (Mn) 11) कॉपर (Cu) 12) बोरान (B) 13) मेग्नेशियम (Mg) 14) अल्युमिनियम (Al) 15) केल्शियम (Ca) 16) मोलिब्डेनम (Mo).
इस विश्लेषण के साथ आपको उचित सलाह भी दियी जाती है.