
ह्यूमस का सफेद झूट!
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वर्ष १८५० के आसपास वैज्ञानिकों ने सड़ी हुई खाद और मिटटी को कॉस्टिक में उबालकर एक काला पदार्थ अलग किया और इसे नाम दिया "ह्यूमस". इसका रंग गाढ़ा होता है. इसपर सूक्ष्मजीवोंका असर नही होता. यह कोलाइडल होता है. जिस तरह हमे, हर केमिकल का फोर्म्युला पता होता है, "ह्यूमस" का केमिकल फोर्म्युला फिक्स नही है. यूरिया का फोर्म्युला जिस तरह CH4N2O है, ग्लूकोज का C6 H12 O6 है, उसी तरह ह्यूमस का कोई फिक्स फोर्म्युला नही है, वह बदलते रहेता है. इसमें करीबन ६० प्रतिशत कार्बन, ६ प्रतिशत नायट्रोजन, थोडा फोस्फरस, थोडा सल्फर होता है.
अचरज की बात है, हयूमस को अगर भी मिटटी से और कम्पोस्ट से निकाला गया है, यह मिटटी या कम्पोष्ट में डिटेक्ट नही होता. मिटटी या कम्पोस्ट में कितना ह्यूमस है? ऐसा बताने के लिए, कोई टेस्ट भी नही है!
ये बात समझने के लिए, हम प्रोटीन का उदाहरण लेते है. मूंगफली के दानों में प्रोटीन होता है, जो निकाला जा सकता है. दानों को कोलू में चलाने के बाद इसका तेल निकल जाएगा और बुरादा बचेगा. इस बुरादे को कॉस्टिक में घोलने के बाद, सोल्यूशन को अलग करे. इस सोल्यूशन में एसिड डालने से प्रोटीन सोल्यूशन से अलग हो जाएगा. जिसे छानकर अलग कर सकते है. वैज्ञानिक प्रोटीन के फोम्युले को जानते है. लैब में बना सकते है. और अलग अलग पदार्थो में कितना प्रोटीन है? यह बता सकते है. ह्यूमस का ऐसा नही है. मिटटी या कम्पोस्ट पर कॉस्टिक की प्रक्रया करने के दौरान, यह तैयार होता है.
इसको दूसरे तरीके से भी समझा जा सकता है. हर जिव, मरने के बाद, इसमें बसे पदार्थ सड़ने लगते है. सूक्ष्मजिव इन्हें गलाकर, इसके छोटे छोटे पदार्थ बना देते है. वनस्पति इन्ही पदार्थो का शोषण करते हुए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और तेल बनाती है. इस प्रक्रिया में ह्यूमस कही नही बनता!
मिटटी के उर्वरता के लिए ह्यूमस की जरूरत होती है. ऐसा हमने सालों से सूना है. आजतक हम लोगों ने ह्युमिक एसिड की अनेक बोतले और बोरीया मिटटी में मिलीइ है. इसके अनेक फायदे आपको गिनाए गए है!
तो क्या है सच्चाई? इस विषय में औरभी लेख आने वाले है. उन्हें देखने हेतु आप हमारे फेसबुक और टेलीग्राम ग्रुप ज्वाइन करे या यूट्यूब चेनल को सबस्क्राईब करे!
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अचरज की बात है, हयूमस को अगर भी मिटटी से और कम्पोस्ट से निकाला गया है, यह मिटटी या कम्पोष्ट में डिटेक्ट नही होता. मिटटी या कम्पोस्ट में कितना ह्यूमस है? ऐसा बताने के लिए, कोई टेस्ट भी नही है!
ये बात समझने के लिए, हम प्रोटीन का उदाहरण लेते है. मूंगफली के दानों में प्रोटीन होता है, जो निकाला जा सकता है. दानों को कोलू में चलाने के बाद इसका तेल निकल जाएगा और बुरादा बचेगा. इस बुरादे को कॉस्टिक में घोलने के बाद, सोल्यूशन को अलग करे. इस सोल्यूशन में एसिड डालने से प्रोटीन सोल्यूशन से अलग हो जाएगा. जिसे छानकर अलग कर सकते है. वैज्ञानिक प्रोटीन के फोम्युले को जानते है. लैब में बना सकते है. और अलग अलग पदार्थो में कितना प्रोटीन है? यह बता सकते है. ह्यूमस का ऐसा नही है. मिटटी या कम्पोस्ट पर कॉस्टिक की प्रक्रया करने के दौरान, यह तैयार होता है.
इसको दूसरे तरीके से भी समझा जा सकता है. हर जिव, मरने के बाद, इसमें बसे पदार्थ सड़ने लगते है. सूक्ष्मजिव इन्हें गलाकर, इसके छोटे छोटे पदार्थ बना देते है. वनस्पति इन्ही पदार्थो का शोषण करते हुए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और तेल बनाती है. इस प्रक्रिया में ह्यूमस कही नही बनता!
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