
कपासमें खरपतवार प्रबंधन
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इस लेख का टायटल "कपासमें खरपतवार प्रबंधन" है, ना के नियंत्रण. प्रबंधन और नियंत्रण में क्या अंतर है? यह बात जान लेना किसान भाइयों को बड़ी मदत कर सकता है.
सोचिये अगर हम सब क्लास में बैठे है और टीचर हमे कपास के फसल के बारे में सिखा रहे है.
परिदृश्य 1
टीचर जो सिखा रहे है, हम सब मन्त्रमुग्ध होकर शान्ति से सुन रहे है.
परिदृश्य 2
टीचर बोरिंग तरीकेसे सिखा रहे है. हम सब हल्लागुल्ला कर रहे है, बिचबिच में टीचर चिल्ला चिल्ला कर हमे शांति से सुननेको कह रहे है.
तो परिदृश्य 1 है प्रबंधन और परिदृश्य 2 है नियंत्रण !
तो अगर आप खरपतवार प्रबंधन कर पाए तो आपको खरपतवार नियंत्रण करने की जरूरत कम होगी.
प्रबंधन छोड़ आप सिर्फ नियंत्रण का सोचेंगे तो आपको जरूरत से ज्यादा जोर लगाना पड़ेगा. खर्चा बढ़ेगा और फसलमें खरपतवार उगने का खामियाझा भी भुगतना पड़ेगा.
कपासकी किस्मे अधिक उपज देनेवाली होती है. इन्हे भरपूर मात्रामें पोषण की जरूरत होती है. अगर अधिक उपज देने वाले किस्म को पानी, उर्वरक और जगह के लिए खरपतवारों से मुकाबला करना पड़ता है, तो उनकी जरूरते पूरी नहीं होती. किस्मे अपने अनुवांशिक उपज को प्रकट नही कर पाती. पोषण के कमी के कारण यह किस्मे बीमारियों का तथा कीटो का प्रतिकार नही कर पाती. बीमार फसलों को अधिक उर्वरक और किटनाशक देने पड़ते है.
खर्चा बढ़ेगा और उपज भी कम होगी, तो मुनाफा होनेसे रहा! इसीलिए किसान भाइयों को खरपतवार नियंत्रण से अधिक जोर, खरपतवार प्रबंधन में ही लगाना चाहिए.
हर फसल के लिए एक प्रारंभिक संवेदनशील अवधि होती है। इस अवधि के दौरान फसल की प्रारंभिक वृद्धि होती है। इस दौरान अगर फसल, खरपतवार से मुक्त रहेगी तो फसल तेजी से बढती है संवेदनशीलता के अवधि में अपनी पूर्ण शाकीय वृद्धि प्राप्त क्र लेती है. फसल इतनी बड़ी हो जाती है के खरपतवार फसलमें ना जम पाएगी, ना फसल का मुकाबला कर पाएगी।
खरपतवार प्रबंधनके इस नियम को लागू करने हेतू , खरपतवार के रोकथाम के लिए ...
- हमेशा खरपतवार रहित बीजों का प्रयोग करें
- बांधों पर खरपतवार न उगने दें
- फूल आने से पहले खरपतवार को हटा दें
- पूरी तरह से विघटित कंपोष्ट (बदबू मुक्त) खाद का प्रयोग करें
- बुवाई से पहले खरपतवार हटाकर खेत को साफ करें
- शाखनाशीयोंका उपयोग निवारण के लिए करे

अगर फसल के पहले आप मृदा सौरीकरण करेंगे तो उपरी परत में जो भी खरपतवार की बीजे होंगी मर जाएगी. सौरीकरण करने हेतु पहले मिटटी को समतल और नम बनाए. इसपर ५० या १०० मायक्रोन की पन्नी से ३ हप्तोंतक ढके. इस प्रक्रिया से खरपतवार के बीजोंके साथ साथ मिटटी जनित कीटों के अंडे, रोग कारक फफूंद के कोष भी मारे जाएंगे.

फसल प्रबंधन - यह एक अप्रत्यक्ष विधि है। इनमें सही गहराई और सही दूरी पर तथा उचित समय पर बुवाई करना, उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करना और उचित जल प्रबंधन और अंतरफसल शामिल हैं। कपास में कतार से कतार की दुरी, कपास के प्रजाति नुसार, ३ से ६ फिट और एक कतार में पौधों के बिच १ से १.५ फिट का अंतर रखा जाता है. प्रति एकड़ पौधों की संख्या ५८०० से ९७०० के बिच होती है. बागवानी प्रजातियों में यह संख्या ७२५० की होती है. तो बारिशपर निर्भर प्रजातियों में संख्या ९७०० के आस पास होती है. उर्वरक संतुलन हेतु बुवाई के पहले के बेसल डोस के अलावा बुवाई के ५-६ दिनोंमें, ४५, ६० और ९० दिनोंपर आवर्ती उर्वरक देने होगे.
भौतिक प्रबंधन- इस में निराई-गुड़ाई करना, बुवाई पूर्व निराई करना, मल्चिंग (प्लास्टिक, अवशेष) का इस्तेमाल करना शामिल हैं। कपास में मल्चिंग का उपयोग कम ही होता है. प्रयोगों में इसके फायदे देखे गये है. आप चाहे तो ३० मायक्रोंन का पेपर इस्तेमाल कर सकते है. निराई गुड़ाई करने हेतु विविध प्रकारे के हतियार और उपकरण अब उपलब्ध है. हेंड विडर, रोलर विडर, ब्रश कटर, पेट्रोल विडर और टिलर इत्यादियोंकी अधिक जानकारी हेतु यहा क्लिक करे.
रासायनिक प्रबंधन - शाकनाशी का प्रभाव जितना स्पष्ट होता है उतनाही स्पष्ट उसका दुष्प्रभाव होता हैं। इसलिए उनका उपयोग उचित तरीकेसे किया जाना चाहिए। कपास के सभी शाखनाशी देखने के लिए यहा क्लिक करे।
यूपीएल का दोस्त सुपर, सिंजेंटा का डोमीट्रेल, टाटा का पानीडा ग्रैंड अमेज़न पर उपलब्ध है. इनमें पेंडीमेथालिन की 38.7% मात्रा होती है और यह एक माइक्रो-एनकैप्सुलेटेड घना घोल है. इसका छिडकाव खरपतवार उगने के फले करना है. यह घास और चौड़ी पत्ती वाली खरपतवार दोनों पर असर करता है.
डोस 3-4 मिली प्रति लीटर है. सर्वोत्तम परिणामों के लिए छिडकाव के वक्त जमीन खरपतवार, कचरा और झुरमुट से मुक्त होना चाहिए।
भारी बनावट वाली मिट्टी या कार्बनिक पदार्थों में उच्च या जहां लंबे समय तक खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता होती है, वहां डोस बढाकर प्रयोग करें। उत्पाद पत्रक में उल्लिखित निर्देशोंका पालन करे.
इन्सेक्टीसाईड इंडिया का हकामा और गोदरेज के इमपुल में क्वीझेलोफ़ोप इथील ५% सक्रिय तत्व है. इनका का प्रयोग खड़ी फसल में उगे हुए घास वर्गीय खरपतवारों के नियंत्रण हेतु किसा जा सकता है. सालभर उगने वाले घास वर्गीय खरपतवारोपर यह पूरा नियंत्रण दिखाता है. ह्कामा का रेन फ़ास्टनेस १ घंटे का है इसलिए इसके छिडकाव के १ घंटे बाद बारिश होनेपर भी यह पूरा असर दिखता है.
कपास के अलावा इसका उपयोग सोयबीन, मूंगफल्ली, प्याज, लहसुन, मुंग, उड़द, मिंट, सब्जिया, ज्यूट, तलहन, हल्दी, धनिया, चाय आदि फसलोंमें भी किया जाता है.
फिनोक्साप्रोपील इथील ९.३ इ.सी. यह हर्बीसाइड बायर के व्हिप सुपर तथा हेरंब के ओक्सी सुपर नाम से उपलब्ध है और अंकुरण के बाद इसे सोयाबीन, चावल, कपास, उड़द और प्याज जैसे फसलों में आनेवाले घास पर छिड़का जा सकता है। यह छिड़काव के तुरंत बाद अवशोषित हो जाता है और खरपतवार में चर्बी बनने को रोखता है। चूंकि इसे मिट्टी पर नहीं छिड़कना है, इसलिए मिट्टी को प्रभावित नहीं करता है और कपास बाद कौन सी फसल उगानी है, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। 300 मिली प्रति एकड़ पर्याप्त है।
फ्लाउझीफ़ोफ पि ब्युटिल १३.४% इसी.: सिंजेंटा कंपनी का फ्यूजीफ्लेक्स पत्तियों द्वारा जल्दी अवशोषित हो जाता है और स्थानांतरित हो जाता है। यह सभी मौसमों में अच्छा प्रदर्शन करता है। फ्यूजीफ्लेक्स को दोहरी कार्रवाई करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। पहले यह पत्ती के माध्यम से कार्य करता है और फिर पौधे के प्रत्येक भाग में स्थानांतरित हो जाता है। दूसरे, यह मिट्टी के माध्यम से काम करता है और जड़ों के माध्यम से प्रवेश करता है और अन्य भागों में पहुंचकर उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देता है। यह प्रमुख घास के खरपतवारों को नियंत्रित करता है और बेहतर फसल स्थापना प्रदान करता है जिससे स्वस्थ विकास सुनिश्चित होता है।
यह सोयाबीन, कपास और मूंगफली के लिए उभरने के बाद का चयनात्मक शाकनाशी है। खुराक/एकड़ - 400-500 मिली/एकड़।
पैराक्वाट डाइक्लोराइड 24% एस.एल. -
पैराक्वाट डाइक्लोराइड 24% एस.एल. - ऑल क्यलिअर नाम से यह गैर-चयनात्मक, स्पर्शनीय खरपतवार नाशक है। इसका आविष्कार 1882 में किया गया था लेकिन उपयोग 1955 में देखा गया।
यह वार्षिक घास, चौड़ी पत्ती और बारहमासी खरपतवारों के तेजी से नियंत्रण की विशेषता है।
छिड़काव के तुरंत बाद बारिश होने पर भी यह पानी में नहीं बहता है। जब यह मिट्टी को छूता है, तो इसकी क्षमता गायब हो जाती है।
कपास के अलावा, चाय, आलू, रबड़, मक्का, अंगूर और सेब मे उग आए दो-तीन पत्ती के खरपतवार पर स्प्रे करें। इसके तुषार मुख्य फसल पर नया गिरे इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
बिना जुताई के धान, गेहूँ और मक्के में बुवाई से पहले इसका प्रयोग करना चाहिए।
खुराक प्रति एकड़ 650 मिली की है। उचित खरपतवार नियंत्रण से उपज 30-40% तक बढ़ती है।
डोस: १०० मिली प्रति १५ लीटर
गोदरेज का हिटविड मैक्स यह एक दोहरा खरपतवार नाशक है इसमें पायरीथायोबैक सोडियम और क्वीझालोफोप एथिल यह दो सक्रिय घटक है. संकरी और चौड़ी पत्ती के खरपतवारों का नियंत्रण करने में यह सक्षम है. कपास की खड़ी फसल में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. डोस २ मिली प्रति लिटर है.
कपास के सभी शाखनाशी देखने के लिए यहा क्लिक करे।
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