Collection: केचुआ संवर्धन

मिटटी में रेंगते केचुए, मिटटी के जिवंत होने का महत्वपूर्ण लक्षण है. मिटटी में सड रहे जैविक अवशेषों से पोषण पाने के लिए केचुए मिटटी निगलते है. यह मिटटी जब विष्टा के रूप में फिरसे मिटटी में मिलती है तब मिटटी जैविक गुणों से संमृद्ध हो जाती है. फसल से उपज के आलावा जो भी अवशेष मिलते है, उनसे केचुआ खाद प्राप्त करने से किसान को बाहरी महँगी खाद खरीदने की कोई जरूरत नहीं होगी. भूरे-तथा काले रंग के, मिटटी से हल्के (०.७-०.९ घनत्व) केचुआ खाद में १५-२५ प्रतिशत नमी के साथ साथ १८ प्रतिशत ऑर्गेनिक कार्बन, १ प्रतिशत नत्र, ०.८ प्रतिशत फोस्फेट और ०.८ प्रतिशत पोटेश के आलावा केल्शियम, मैग्नेशियम, सल्फर, लोह, जिंक, मेंग्निज, बोरान आदि सूक्ष्म पोषक तत्व भी होते है. केचुए द्विलिंगी होने से हर केचुआ अंडे (कोकून) देता है. अंडे से निकले कछुए ३० से ४५ दिनों में प्रजनन करने लगते है और इनकी आयु ७ से ८ माह तक होती है. एक केचुआ अपने वजन के ५ गुना मिटटी को निगलता है और ऐसा करने हेतु २४ घंटे में अनेको बार मिटटी के सतह से निचले परतों में भ्रमण करता है.

उपज के आलावा जो भी अवशेष मिलते है उनको केचुआ खाद में परावर्तित करने हेतु किसान एमेजोंन से जीवित केचुए और केचुआ बेड खरीद सकते है. फसल के अवशेषों के आलावा गोबर, एग्रोइंडस्ट्री रेसीड्यू, फ़ूड इंडस्ट्री रेसीड्यू, मेस-रेस्टोरंट की झूटन, म्युन्सिपल वेस्ट और हॉस्पिटल वेस्ट से भी केचुआ खाद बना सकते है. अनेक युवा केचुआ खाद का व्यवसाय कर अच्छा मुनाफा कमा रहे है.
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