
जंगली घास से सुनहरे अनाज तक: गेहूं के बीज विकास की आकर्षक यात्रा
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गेहूं, जो करोड़ों लोगों के आहार का अभिन्न हिस्सा है, ने अपने जंगली पूर्वजों से आज के उच्च उत्पादन देने वाले, रोगप्रतिरोधी किस्मों तक पहुंचने के लिए हजारों वर्षों में एक अद्भुत यात्रा तय की है। मानवी कल्पकता, प्राकृतिक चयन और वैज्ञानिक प्रगति के संयुक्त प्रयासों से यह संभव हुआ है। आइए गेहूं की आज की किस्मों को आकार देने वाले कुछ महत्वपूर्ण पड़ावों पर एक नज़र डालें।
कृषि की शुरुआत: जंगली घास से बना सुनहरा गेहू
- जंगली पूर्वज: कल्पना कीजिए, 10,000 साल पहले का उपजाऊ फर्टाइल जमीन का टुकड़ा। हमारे पूर्वज, उस समय के घुमंतू मानव, धीरे-धीरे बसने लगे थे। उनकी पैनी नज़रों ने जंगल में उगने वाली घासों को देखा - एंकोर्न, एमर... उन्हें एहसास हुआ कि ये छोटे दाने वाली घासें उनके जीवन का आधार बन सकती हैं। फिर क्या, उन्होंने जंगल से इन घासों को अपने घर के पास लाया और उनकी खेती शुरू कर दी। यह थी खेती की यात्रा की शुरुआत।
- किसानों का चयन: पीढ़ी दर पीढ़ी यह सिलसिला चलता रहा। हर किसान अपनी फसल को बारीकी से देखने लगा। किस पौधे में ज्यादा दाने लगते हैं, किस पौधे के दाने भरे हुए हैं, यह वे पहचानने लगे। और फिर, अच्छे गुणों वाले बीज अगले साल के लिए रख लिए गए। उन्हें पता नहीं था कि वे 'चयन' की इस प्रक्रिया के माध्यम से घास को पालतू बना रहे हैं। आज हम जिन फसलों पर निर्भर हैं, वे इसी लंबी यात्रा का फल हैं।
वैज्ञानिक संकर: एक नया आयाम
- औपचारिकता: 19वीं शताब्दी में, पौध प्रजनन को एक नई दिशा मिली। अब यह काम सिर्फ किसानों के हाथ में नहीं था, बल्कि वैज्ञानिक भी इसमें शामिल हो गए थे। उन्होंने गेहूं की विभिन्न किस्मों का बारीकी से अवलोकन किया, उनके गुणों को समझा और धीरे-धीरे, व्यवस्थित रूप से, अच्छे गुणों का चयन करके गेहूं को और बेहतर बनाने का प्रयास शुरू किया।
- मेंडेलियन आनुवंशिकी: 20वीं सदी की शुरुआत में, मेंडल नामक वैज्ञानिक के शोध ने आनुवंशिकी में एक क्रांति ला दी। अब हमें पता था कि पौधों के गुण उनके जीन में होते हैं और वे अगली पीढ़ी में कैसे जाते हैं। इससे गेहूं के प्रजनन को एक नई दिशा मिली। अब वैज्ञानिक अधिक सटीकता से, विशिष्ट गुणों का चयन कर सकते थे।
- हरित क्रांति: 20वीं सदी के मध्य में, 'हरित क्रांति' नामक एक महत्वपूर्ण घटना ने दुनिया को बदल दिया। वैज्ञानिकों ने गेहूं की ऐसी किस्में विकसित कीं जो पहले की किस्मों की तुलना में बहुत अधिक उत्पादन देती थीं। इससे दुनिया भर में खाद्यान्न की कमी को दूर करने में मदद मिली। गेहूं की इन नई किस्मों को 'अर्ध-बौना' कहा जाता था क्योंकि वे पहले की किस्मों से छोटी थीं, लेकिन उनका उत्पादन बहुत अधिक था।
नवीनतम खोज: विकास की नई ऊंचाइयां
- संकरण: आज के समय में, वैज्ञानिकों ने गेहूं के विकास में एक और छलांग लगाई है। अब वे सिर्फ चयन नहीं करते, बल्कि विभिन्न गेहूं की किस्मों के बीच संकरण करा रहे हैं। इससे उन्हें ऐसे गेहूं तैयार करने में मदद मिलती है जो रोगों का सामना कर सकें और भरपूर फसल दे सकें।
- मार्कर-असिस्टेड सिलेक्शन: इसमें एक कदम और आगे बढ़ते हुए, वैज्ञानिक अब 'मार्कर-असिस्टेड सिलेक्शन' नामक एक अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। इस तकनीक से उन्हें शुरुआत में ही पता चल जाता है कि किस पौधे में अच्छे गुण हैं। इससे नई किस्म तैयार करने की प्रक्रिया बहुत तेज हो जाती है।
- आनुवंशिक अभियांत्रिकी: लेकिन वैज्ञानिक यहीं नहीं रुकना चाहते। वे अब 'जेनेटिक इंजीनियरिंग' नामक एक नए क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इसमें वे गेहूं के जीन में बदलाव करके उसे ऐसे गुण देना चाहते हैं जो प्राकृतिक रूप से उसमें नहीं होते। कल्पना कीजिए, एक ऐसा गेहूं जो सूखे में भी टिक सके, या जिसमें और भी अधिक पोषण हो! यह अभी प्रयोगशाला में है, लेकिन भविष्य में यह संभव होगा इसमें कोई संदेह नहीं है।
संक्षेप में, गेहूं के विकास की यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। यह लगातार आगे बढ़ रही है, नई संभावनाओं को जन्म दे रही है।
गेहूं की किस्मों की दुनिया
- उच्चतम उपज: डीबीडब्ल्यू 327, हाईटेक गेहूं और आरजीटी गेहूं जैसी किस्में प्रभावशाली उपज क्षमता प्रदर्शित करती हैं, जो प्रति हेक्टेयर 8 टन तक पहुंचती हैं।
- सबसे अजीब बात: आइंकोर्न, एम्मर और स्पेल्ट जैसे प्राचीन अनाज अपने अनूठे स्वाद और पोषण संबंधी विशेषताओं के साथ अतीत की झलक पेश करते हैं ।
- सबसे महत्वपूर्ण: नोरिन 10 और सीआईएमएमवाईटी गेहूं ने वैश्विक खाद्य उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
गेहूं की किस्म | प्रमुख विशेषताऐं |
डीबीडब्लू 327 (करण शिवानी) | उच्च उपज क्षमता, पंजाब और हरियाणा के लिए उपयुक्त |
हयोला 50 | उच्च उपज क्षमता, विविध परिस्थितियों के अनुकूल |
आइंकोर्न | प्राचीन गेहूँ, छोटे दाने, अखरोट जैसा स्वाद |
एम्मर | प्राचीन गेहूँ, उच्च प्रोटीन सामग्री, मिट्टी जैसा स्वाद |
नोरिन 10 | अर्ध-बौनी किस्म, हरित क्रांति में सहायक |
CIMMYT गेहूँ | रोग प्रतिरोधी, विभिन्न जलवायु के अनुकूल |
गेहूं की गाथा: निरंतर विकास की ओर
गेहूं की बेहतर किस्मों की खोज जारी है। वैज्ञानिक और प्रजनक ऐसे गेहूं को बनाने के लिए नवीन तकनीकों की खोज कर रहे हैं जो और भी अधिक लचीला, उत्पादक और पौष्टिक हो। चूंकि हम जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, इसलिए ये प्रगति एक टिकाऊ और खाद्य-सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होगी।
यह लेख resetagri.in पर होस्ट किया गया है और इसे जेमिनी एआई की सहायता से बनाया गया है। हालांकि हम सटीकता के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन गेहूं की खेती पर व्यक्तिगत सलाह के लिए हमेशा स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें।