
क्या आप फफूंदी नाशक के साथ उर्वरक मिलाते हैं?
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फसलों में अक्सर फफूंदी जनित रोग (fungal diseases) हो जाते हैं। इन रोगों को पहचानना और उनका सही उपचार करना बहुत ज़रूरी होता है। कुछ लोग जानकारी के अभाव में फफूंदी नाशक के साथ यूरिया जैसे उर्वरकों को मिलाकर छिड़काव करते हैं, जिससे अक्सर नुकसान ही होता है। आइए समझते हैं कि फफूंदी जनित रोगों को कैसे पहचानें और सही उपचार कैसे करें।
फफूंदी जनित रोग कब आते हैं और उनके लक्षण क्या हैं?
फफूंदी जनित रोग आमतौर पर उच्च आर्द्रता (humidity), नम मौसम (wet weather), और कम तापमान (low temperature) में अधिक फैलते हैं। ये रोग पत्तियों, तनों और फलों पर अलग-अलग तरह के लक्षण दिखाते हैं।
पत्तियों पर धब्बे: पत्तियों पर अक्सर सफेद, भूरे या काले रंग के धब्बे या धब्बे बन जाते हैं। ये धब्बे अक्सर पाउडर जैसे या रुई जैसे दिखाई देते हैं।
पत्तियों का पीला पड़ना: पत्तियों पर पीले धब्बे बनने के बाद, वे धीरे-धीरे पूरी तरह से पीली पड़ जाती हैं और अंत में गिर जाती हैं।
पौधे का विकास रुकना: फफूंदी पौधे के पोषक तत्वों को खा लेती है, जिससे पौधे का विकास रुक जाता है और वह कमजोर हो जाता है।
जीवाणु रोग और पोषक तत्वों की कमी से कैसे अलग हैं?
फफूंदी जनित रोगों के लक्षण अक्सर जीवाणु रोगों (bacterial diseases) या पोषक तत्वों की कमी से मिलते-जुलते लगते हैं, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं:
फफूंदी रोग बनाम जीवाणु रोग:
फफूंदी रोगों में पत्तियों पर अक्सर सूखे और गोल धब्बे दिखते हैं, जबकि जीवाणु रोगों में धब्बे अक्सर कोणीय और गीले होते हैं।
जीवाणु रोग से संक्रमित पौधों में अक्सर दुर्गंध आती है।
फफूंदी रोग बनाम पोषक तत्वों की कमी:
फफूंदी रोगों में लक्षण एक ही जगह पर शुरू होते हैं और धीरे-धीरे पूरे पौधे पर फैलते हैं।
पोषक तत्वों की कमी में, लक्षण पूरे पौधे पर एक साथ और समरूप (symmetrically) रूप से दिखाई देते हैं। जैसे, नाइट्रोजन की कमी में निचली पत्तियां एक समान रूप से पीली हो जाती हैं, जबकि फफूंदी रोग में पीलापन धब्बों के रूप में शुरू होता है।
फफूंदी नाशक के साथ उर्वरक क्यों नहीं मिलाना चाहिए?
जब आप फफूंदी नाशक और उर्वरकों को एक साथ मिलाते हैं, तो यह फसल के लिए हानिकारक हो सकता है।
रासायनिक प्रतिक्रिया: दोनों रसायनों के मिलने से उनकी क्षमता (efficacy) कम हो जाती है। यह मिश्रण फफूंदी नाशक के असर को कम कर देता है, जिससे रोग पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाता।
रोगजनक को पोषण: अगर रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं भी होती है, तो भी आप फफूंदी नाशक के साथ जो पोषक तत्व (जैसे यूरिया) मिलाते हैं, वह उसी कवक (fungus) को पोषण देता है जिसे आप मारना चाहते हैं। एक तरफ आप उसे खत्म करने की दवा दे रहे हैं और दूसरी तरफ उसे खाने के लिए पोषक तत्व।
पौधे की कमजोरी: रोगग्रस्त पौधा पहले से ही कमजोर होता है और वह उर्वरकों को पूरी तरह से अवशोषित नहीं कर पाता। ऐसे में पोषक तत्व बर्बाद हो जाते हैं और पूरा लाभ नहीं मिल पाता।
इसलिए, किसी भी फफूंदी नाशक का छिड़काव करते समय, उसके साथ कोई भी उर्वरक, चाहे वह यूरिया हो, जिंक हो या कोई भी अन्य एनपीके ग्रेड हो, न मिलाएं। सबसे पहले केवल फफूंदी नाशक का छिड़काव करें। जब रोग खत्म हो जाए और पौधा स्वस्थ हो जाए, तब ही उर्वरकों का छिड़काव करें। इस तरह आपकी फसल स्वस्थ भी रहेगी और आपका खर्चा भी बचेगा।