
मूंगफली पर होने वाले फफूंद जनित रोग कौन-कौन से हैं?
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मूंगफली उत्पादन के वैश्विक परिदृश्य में भारतीय किसान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खेती के क्षेत्र और कुल उत्पादन दोनों के संदर्भ में। भारतीय किसान 54 लाख हेक्टेयर (2022 तक) में मूंगफली की खेती करते हैं और मूंगफली उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं, जिसका उत्पादन लगभग 101 लाख टन।
इस लेख में हम मूंगफली में होने वाले विभिन्न फफूंद रोगों के बारे में जानेंगे जो उपज को नुकसान पहुंचाते हैं। हम यहाँ उपयुक्त फफूंदनाशकों का एक संग्रह प्रदर्शित करते हैं जिनका उपयोग विभिन्न फफूंद रोगों के उपचार में किया जा सकता है, कृपया इस संग्रह को खोजने के लिए पृष्ठ को नीचे स्क्रॉल करें।
बीज एवं पौध रोग:
- कॉलर रॉट (एस्परगिलस नाइजर): यह रोग बीजों और युवा पौधों को प्रभावित करता है, जिससे उगने से पूर्व सड़न, बौनापन, मुरझाना और मृत्यु हो जाती है।
- एफ़्लैटॉक्सिन रूट रॉट (एस्परगिलस फ़्लेवस): यह उगने के बाद मुरझाने, विकास में रुकावट और पत्तियों का रंग बदलने का कारण बनता है। संक्रमित बीजों में एफ़्लैटॉक्सिन पैदा करता है, जिससे स्वास्थ्य को ख़तरा होता है।
- डैम्पिंग-ऑफ (राइजोक्टोनिया सोलानी, फ्यूजेरियम प्रजाति): बीजों और पौधों पर आक्रमण करता है, जिससे मृदु गलन और मुरझान उत्पन्न होता है।
- शुष्क जड़ सड़न (मैक्रोफोमिना फेसियोलिना): यह रोग पुराने पौधों के मुरझाने, पीले पड़ने और मृत्यु का कारण बनता है, विशेष रूप से फली विकास के दौरान।
- प्रारंभिक पत्ती धब्बा (सरकोस्पोरा एराकिडीकोला): इससे पत्तियों पर पीले किनारों वाले गोलाकार भूरे धब्बे पड़ जाते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण और उपज में कमी आती है।
- विलंबित पत्ती धब्बा (माइकोस्फेरेला एराकिडीकोला): पत्तियों पर बड़े, अनियमित भूरे से भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो संभावित रूप से गंभीर पत्ती झड़ने का कारण बनते हैं।
- रस्ट (पुकिनिया एराचिडिस): यह पत्तियों पर नारंगी-भूरे रंग के दाने उत्पन्न करता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण और उपज में बाधा उत्पन्न होती है।
- फली सड़न (एस्परजिलस फ्लेवस, एस्परजिलस नाइजर, राइजोपस प्रजाति): इससे फलियां काली पड़ जाती हैं, सिकुड़ जाती हैं और सड़ने लगती हैं, जिससे उपज और विपणन क्षमता कम हो जाती है।
- शेलिंग मोल्ड (एस्परगिलस फ्लेवस, पेनिसिलियम एसपीपी): भंडारण के दौरान कर्नेल को प्रभावित करता है, जिससे रंग खराब हो जाता है, गुणवत्ता कम हो जाती है और संभावित एफ्लाटॉक्सिन संदूषण होता है।